"अपराधबोध से परे होता समाज" मैं जिम्मेदार तो नहीं?
स्मिता मिश्र
आज हर
टीवी चैनल पर घमासान मचा है, हर
अखबार की सुर्खियां एक मुद्दा चिल्ला रही हैं, क्या
श्रीनिवासन को इस्तीफा देना चाहिए? मसला यूं है कि दिल्ली
पुलिस ने स्पॉट फिक्सिंग में जब तीन क्रिकेट खिलाडि़यों को धरा तो कई गांठे खुलती
चली गई और फिक्सिंग का सिरा छोटे खिलाडि़यों से बड़े खिलाडि़यों तक जा पहुंचा
जिसमें पांच-दस लाख के लोभ में आने वाले छोटे खिलाडि़यों से लेकर बड़ा खेल खेलने
वाले खिलाड़ी भी शामिल हैं। विंदु दारा सिंह जिन्होंने अपने खिलाड़ी पिता की यश
वृद्धि में तो कभी कोई काम नहीं किया, हां इतर कारणों से
अधिक चर्चा में रहे। वे तो इतने बड़बोले हैं कि यदि पुलिस उन्हें न पकड़ती तो वे
खुद ही अपनी यश गाथा सबको सुनाते फिरते।
पकड़े
गये श्रीसंत, अजित चंदीला और अंकित
चव्हाण के खेल को देखे तो राष्ट्रीय क्रिकेट में इनका भविष्य कुछ आशाजनक नहीं था।
बहुत औसत आर्थिक पृष्ठभूमि के अंकित और चंदीला तो भारतीय टीम संभावितों में भी कभी
नहीं रहे। इसलिए 10-15 लाख रुपए ही इनके लालच का कारण बने
लेकिन सफल अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर रहे श्रीसंत की इस मामले में उपस्थिति अचंभित
करती है और उससे भी ज्यादा अचंभित करती है स्वयं बीसीसीआई के अध्यक्ष और चेन्नई
सुपरकिंग्स के मालिक एन. श्रीनिवासन के दामाद मयप्पन की संलिप्तता।
आज हर
चैनल फिक्सिंग के समाचार को दिखा रहा है उससे यह लगता है कि पूरे देश में आज कोई
और समस्या बची ही नहीं। आज कोलगेट कांड कोई मुद्दा नहीं है। चीन का अतिक्रमण और ‘लाल आतंक’ भी दो दिन की चर्चा से
अधिक कुछ नहीं। यदि आज कुछ महत्वपूर्ण है तो क्रिकेट स्पॉट फिक्सिंग। इस देश में
क्रिकेट अच्छे और बुरे सभी रूपों में खबर है, मैदान के भीतर
और मैदान के बाहर भी। वाह रे हमारा मीडिया! पहले तो खुद ही आईपीएल गाथा से पृष्ठ के
पृष्ठ रगं देते हैं फिर हाय-तौबा मचाते हैं। हमारे राष्ट्रीय समाचार पत्रों और
टीवी मीडिया का तो यह हाल है कि देशी विदेशी क्रिकेट और यूरोपीय फुटबॉल लीग के लिए
तो पृष्ठ दर पृष्ठ दे देंगे लेकिन देश के मैदानों पर खेल रहे हमारे अपने होनहारों
के लिए दो पंक्तियां भी बामुश्किल लिखेंगे। इनके लिए अपने स्थानीय मैदानों, स्कलू
-कॉलजे की खले हलचलों से ज्यादा महत्वपूर्ण यूरोपीय मैदानों की हलचल होती है।
हमारे स्कूल, विश्वविद्यालयों की बड़ी से बड़ी खेल
गतिविधियां, टूर्नामेंट हमारी राष्ट्रीय मीडिया में स्थान
पाने के लिए तसरती रह जाते हैं। लेकिन हमारे साथी खेल पत्रकार इसकी रिपोर्टिंग गैर
जरूरी मानते हैं। हमारे खबरिया चैनलों के लिए ये खबरे अनउपजाऊ हैं क्योंकि इनसे
कोई रिवेन्यु नहीं आता है।
साथ ही
इस समस्या को एकांगी रूप से नहीं देखा जा सकता है। यह समझना जरूरी है कि बात
निकलेगी तो दूर तलक जाएगी। केवल श्रीसंत, चंदीला और अंकित को दोषी मानने से काम भर नहीं चलेगा। बल्कि कटघरे में हम
सभी को खड़ा होना पड़ेगा। हमी लोगों ने इन युवकों के सामने ऐसा समाज खड़ा किया है
जो यह संदेश देता है कि पैसा आना चाहिए, चाहे जहां से आए। जब
आज का युवा देखता है कि टू-जी स्कैम, कॉमनवेल्थ घोटाला,
कोयला कांड आदि घोटाले करने वाले भी बाइज्जत ही नहीं हो रहे बल्कि
केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी जगह बना रहे हैं, जबकि सरकारी
कर्मचारी तो एक रात भी थाने में गुजार दे तो सस्पेंड हो जाता है। इस तरह इन युवकों
के सामने ‘माइट इज राइट’ का आदर्श आता है
और माइट यानी ताकत पैसे से ही मिलती है। इसलिए यह समस्या केवल श्रीसंत, चंदीला और अंकित की ही नहीं है बल्कि उन तमाम युवकों की है जिनके सामने हम
एक ऐसा समाज खड़ा कर रहे हैं जिसमें गिल्ट यानी अपराधबोध नहीं है, मूल्यों का सम्मान नहीं है, मेहनत और संयम दो कौड़ी
के हैं। इसलिए मेरे मीडिया साथियों के साथ-साथ उन सभी नेता, अभिनेताओं
से गुजारिश है कि श्रीनिवासन के इस्तीफे की मांग तो करे लेकिन साथ ही हम अपनी भी
जिम्मेदारी सुनिश्चित करे कि क्या मैं तो इस घटना का जिम्मेदार नहीं?
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