Ads

Ads
Ads

धरना संस्कृति

कुलविंदर सिंह कंग


हमने पिछले अंक में लिखा था कि भारतीय राजनीति में कई तरह के खेल होते हैं और खेलों में राजनीति घुसी हुई है। ये ऐसा घालमेल है जिसको आज तक कोई नहीं समझ पाया है। ये धरना संस्कृति भी उसी का परिणाम है।

धरने पहले भी होते थे लेकिन लो लेवल के धरने.. कहीं पप्पू हलवाई धरने पर बैठा है, कहीं दिहाड़ी मजदूर, बुनकर, कारीगर और समोसे के साइज को लेकर स्टुडेंट धरने पर बैठ जाते थे और पुलिस के चार डंडे पड़ते ही भाग खड़े भी होते थे। आज कल के धरने हाई प्रोफाइल हो गए हैं। सरकार खुद ही धरना दे रही है और साथ-साथ धरने से ही सरकार चला रही है। पुलिस के खिलाफ सरकार सड़क पर ही लेट गई जैसे कोई बच्चा खिलौने की ज़िद को लेकर सड़क पर एड़ियां रगड़ने लग जाता है। 

कंट्रास्ट देखो! हमारी दिल्ली पुलिस कभी धरना देने वालों को आधी रात के समय महिला वेष में भागने पर मजबूर कर देती है लेकिन यहां दिल्ली पुलिस के ही विरूद्ध हाई प्रोफाइल बंदा नीले आसमान के नीचे, नीली वैगन आर की बगल में, नीली रजाई ओढ़कर खांसता-खांसता आराम से सो गया और पुलिस रात भर उसकी सुरक्षा में मुस्तैद खड़ी नीली-पीली होती रही। सब टैम-टैम की बात और नीली छतरी वाले की माया है।

खेलों में बदलाव लाने के लिए भी ऐसी ही धरना संस्कृति की जरूरत है। जिन योग्य खिलाड़ियों और कोचों को एशियाड, राष्ट्रमंडल खेल या ओलंपिक में जाने का मौका नहीं मिलता है उनको ये धरना संस्कृति वाला आइडिया फिलाइट पकड़वा सकता है। कुछ महीनों बाद स्कॉटलैंड के शहर ग्लासगो में कॉमनवैल्थ गेम्स होने हैं जैसे ही खेल अधिकारी और उनके चमचे खिलाड़ी और कोच ग्लासगो जानेवाली फिलाइट में बैठे.. इन्हें चाहिए कि ये सब जहाज के सामने रनवे पर ही धरना दे दें। याद रहे.. धरना देते समय खिलाड़ियों ने ट्रैक सूट और शूज वगैरा पहने हों और हाथ में एक लंबे डंडे वाला झाडू जरूर होना चाहिए। सभी खिलाड़ी जहाज के टायरों को अपने टांगों से कैंची मार ले जैसे कार में हैंड ब्रेक होती है वैसे ही जहाज पर लैग ब्रेक लगा लें। यहां पर सरकार टायलेट भी बंद नहीं करवा सकती क्योंकि रनवे पर शायद मेरे ख्याल से टायलेट होते ही नहीं है। धरना देने वालों के लिए कोई पिराबलंब नहीं होगी क्योंकि रनवे के दोनों ओर प्राकृतिक टायलेट यानी झाड़ियां ही झाड़ियां.. मौजां ही मौजां। एक हल्का होने के लिए चला जाए दूसरा भारी भरकम जहाज के सामने लेटा रहे.. टायर से चिपका रहे।

चमचे खिलाड़ियों का दल जहाज की सीट पर ऊकडूं बैठा-बैठा दुखी हो जाएगा पर नीचे नहीं उतरेगा। उसे पता है कि अगर जहाज के गेट खोलेंगे तो धरने वाले सब लोग जहाज में चढ़ जाएंगे। आखिर किसी तरह जहाज उड़ेगा तो लेट होने की वजह से सीधा ग्लासगो के स्टेडियम में ही लैंड करवाना पड़ेगा। बस जहाज के गेट खुलने से पहले ही धरने वाले खिलाड़ी टायर छोड़कर स्टेडियम के ट्रैक पर दौड़ना शुरू कर दें। हो गया पार्टिसिपेशन आयोजक अगर पूछे कि किस देश का प्रतिनिधित्व कर रहे हो तो कह देना कि ये झाडू देखकर ही आइडिया लगा लो। अगर मैडल जीत न पाए तो इसी झाडू से मैडल बुहार के तो ले ही जाएंगे। जो देश ज्यादा मैडल जीतेगा सफाईवाले बन के उनके कमरों में घुसेंगे और सारे मैडल पर झाडू फेर देंगे।

बिना छानबीन किए सिर्फ ब्रेकिंग न्यूज में विश्वास करनेवाला भारतीय इलैक्ट्रॉनिक मीडिया भी न्यूज फ्लैश करने लग जाएगा टोकरे भर-भर के भारत ने मैडल जीते। देख लो.. ये मेरा अपना आडिया है अगर इतना ज्यादा सोना-चांदी-तांबा देश में कहीं एडजस्ट कर सकते हो ते ये धरना संस्कृति अपना लो वर्ना पार्टिसिपेशन कभी नहीं कर पाओगे। देख लो.. मैं भी कभी नहीं गया अगर आप लोगों का कोई पिरोगराम हो तो मुझे भी फोन कर देना मैं भी चिपकू पतरकार बनकर टायर से चिपक जाउंगा।

इस देश में जहां इतने सालों से जुगाड़ संस्कृति से सरकारे चल सकती है तो धरना संस्कृति से खेलों को क्यों नहीं चलाया जा सकता? बोलो-बोलो अब बोलते क्यों नहीं? अगर आइडिया अच्छा नहीं लगा तो गैट न्यू आइडिया एंड इंफोरम्ड मी। सत श्री अकाल।

No comments: