पुरस्कारों का मायाजाल
स्मिता मिश्र
कई विवादों के गुजरने के
बाद आखिरकार सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न प्रदान कर दिया गया। देश के इतिहास में
ऐसा पहली बार हुआ कि किसी खिलाड़ी को भारत रत्न मिला। सचिन के मीरपुर के सौंवे शतक
बनाने से पहले ही इन्हें भारत रत्न देने की मांग उठी थी। चूंकि भारत रत्न की अर्हता
में खेल का क्षेत्र शामिल नहीं था इसलिए देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान की पात्रता
में संशोधन कर खेल का क्षेत्र भी सम्मिलित किया गया।
गत नवंबर में उनके विदाई
टेस्ट समारोह में इसकी घोषणा भी कर दी गई। लेकिन इस घोषणा के साथ अनेक विवाद भी
उठे। आलोचकों ने चुनावी दांव बताया तो साथ ही हॉकी के महान खिलाड़ी ‘ध्यानचंद’ का नाम भी भारत रत्न के
लिए उठने लगा। अनेक आईटीआई चयन प्रक्रिया पर खुलासे की मांग करने करने लगी। इन्ही
सबके मद्देनजर खेल मंत्रालय ने खेल पुरस्कारों के लिए नए मानदंड जारी कर दिए। ताकि
अनावश्यक विवाद से बचा जा सके। ध्यातव्य है कि पिछले कुछ समय से देश के पद्म
पुरस्कार एवं खेल पुरस्कार आलोचना के घेरे में आते रहे हैं जिसके कारण इन
पुरस्कारों की प्रतिष्ठा घटती जा रही है। पिछले वर्ष कृष्णा पूनिया ने सरकार पर
उपेक्षा का आरोप लगाया था कि राजीव गांधी खेल रत्न की उपयुक्त पात्रता के बावजूद
उनकी उपेक्षा हुई। वहीं पहलवान सुशील कुमार के नाम पर तीन-तीन प्रशिक्षकों ने
द्रोणाचार्य पुरस्कार प्राप्त कर लिया। खेल में विश्वविद्यालय को दी जानेवाली
मौलाना अब्दुल कलाम आजाद ट्रॉफी 2011-12 में दी ही नहीं गई।
प्रत्येक वर्ष खेल दिवस
यानी 29 अगस्त को खेल पुरस्कार दिए जाने की परंपरा भी गत वर्ष तोड़ दी गई जिसके
कारण सरकार की आलोचना की गई। इन्हीं विवादों के चलते अब नए निर्देश जारी किए गए
हैं कि उन्हीं प्रशिक्षकों को अब सम्मानित किया जाएगा जिनके मार्गदर्शन में
ट्रेनिंग लेते हुए खिलाड़ियों ने पदक जीते। किसी खेल में अब दो से अधिक खिलाड़ी
(एक पुरुष और एक महिला) और द्रोणाचार्य पुरस्कार में दो से अधिक प्रशिक्षकों के
नाम पर समिति विचार नहीं करेगी। यह स्वागत योग्य कदम है।
आज खिलाड़ी नए दौर से गुजर
रहे हैं। जहां वे अंतरराष्ट्रीय क्षितिज पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। इसलिए
यह जरूरी है कि भारत सरकार खेल संघों में व्याप्त भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार को
दूर करने के लिए कड़े से कड़े कदम उठाए।
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