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हिटलर को जीता पर अपनों से हारा : अपनी ही पहचान को तरसता देश का रत्न


स्मिता मिश्र 


देश की राजधानी दिल्ली धरना स्थल में तब्दील हो गयी हैI कभी ये धरने अनसुने रह जाते हैं तो कभी इन धरनों से उठी आवाज़ सत्ता परिवर्तन कर देती हैI पिछले दो सालों से दिल्ली ऐसे ही महत्वपूर्ण धरनों की गवाह रही हैI पिछले माह ही कडकडाती सर्दी में दिल्ली के मुख्यमंत्री का धरना राष्ट्रव्यापी चर्चा का विषय रहाI ठीक उसी समय दिल्ली के जंतर मंतर पर एक धरना हो रहा था जोकि राष्ट्रव्यापी मुद्दा बनना चाहिए था लेकिन महज़ दो कॉलम की खबर बन कर रह गया I यह धरना उस व्यक्ति के प्रशंसकों ने दिया जिसके नाम पर दिल्ली के एक स्टेडियम का नामकरण 1995 में किया गया किन्तु उसे भारत का रत्न नहीं माना गया यानी मेजर ध्यानचंदI पराधीन भारत में भारतीय हॉकी टीम का प्रतिनिधित्व कर तीन स्वर्ण पदक हासिल करने वाले मेजर ध्यानचंद की उपलब्धियां गौण हो गयी और बहुराष्ट्रीय कॉरपोरेट से संचालित खेल का खिलाड़ी ‘भगवान्’ हो गयाI दस देशों में खेले जाने वाले खेल का ऐसा खिलाड़ी जिसे हर मैच खेलने की मोटी रकम मिलती रही है जो बहुराष्ट्रीय कंपनियों का ब्रांड एम्बेसडर है उसे भारतीय अस्मिता का एम्बेसडर बनाया गयाI 

हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद भारत के महानतम खिलाड़ियों में से एक माने जाते हैं। भारतीय हॉकी के स्वर्णिम अध्यायों को लिखने वाले मेजर ध्यानचंद ने 3 ओलंपिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया। 1928 में भारत ने पहली बार हॉकी में भाग लिया। इस प्रथम भारतीय दल में ध्यानचंद को शामिल किया गया। अपने पहले ही ओलंपिक में भारतीय टीम ने स्वर्ण पदक हासिल किया। 1932 लॉस एंजिल्स ओलंपिक में भारतीय टीम की आक्रामक पंक्ति का दायित्व ध्यानचंद कौ सौंपा गया। इस दायित्व को ध्यानचंद ने बखूबी निभाते हुए भारतीय टीम को खिताबी जीत दिलवायी। 1936 के बर्लिन ओलंपिक में ध्यानचंद को भारतीय दल की कप्तानी सौंपी गई। बर्लिन में अपने शानदार प्रदर्शन से ध्यानचंद ने नाजी शासक हिटलर को भी प्रभावित किया।

कहा जाता है कि हिटलर ने उनके उम्दा खेल से चमत्कृत होकर उन्हें अपने देश से खेलने का न्यौता दिया। जब हिटलर को पता चला कि ध्यानचंद भारतीय सेना में सिपाही है तो उसने जर्मन सेना में कमांडर का पद भी उन्हें देने का न्यौता दिया जिसे ध्यानचंद ने अस्वीकार कर दिया। मेजर ध्यानचंद ने 1928, 1932, 1936 ओलंपिक में खेले गये मैचों में कुल 33 गोल किए। 1928 के ओलंपिक में 10, 1932 में 12 और 1936 में के बर्लिन ओलंपिक में 11 गोल किए। 40 दशक में ध्यानचंद को उनके अभूतपूर्व प्रदर्शन को सम्मानित करने हुए मेजर पद दिया गया।

1956
में इन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया। इनकी प्रथम पुण्यतिथि पर इनकी स्मृति में भारत सरकार एक विशेष डाक टिकट जारी किया। भारत सरकार द्वारा इनकी जन्म तिथि को प्रत्येक वर्ष खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसके बावजूद उन्हें सबसे बड़ा खिलाड़ी नहीं माना गया I यहाँ खेल फेडरेशन कि भूमिका महत्वपूर्ण होती है I लेकिन जहाँ दो-दो हॉकी फेडरेशन हों  उन्हें आपसी खींचतान से फुर्सत कहाँ कि वह देश के गौरव के बारे में सोचें I

मेजर ध्यानचंद का योगदान भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के लिहाज़ से भी महत्वपूर्ण हैI पराधीन भारत में हॉकी खेल भर न होकर राष्ट्र एकता का माध्यम रहाI अभावग्रस्तता के बावजूद पराधीन राष्ट्र को ओलिंपिक स्वर्ण पदकों की उपलब्धि से गौरवान्वित होने के अवसर दिएI इसलिए यह राष्ट्रिय शर्म का विषय है कि हम अपने महान खिलाड़ी को सम्मानित करने में असफल रहे I



 हॉकी के खिलाड़ी और पद्म पुरस्कार
विविध क्षेत्रों विशिष्ट एवं असाधारण प्रतिभाओं को सम्मानित करने के लिए पद्म पुरस्कारों कि स्थापना हुईI खेल के क्षेत्र में 3 खिलाडियो को पद्म विभूषण, 26 को पद्म भूषण, 156 को पद्मश्री प्रदान किया गया हैI अधिकतर पुरस्कार  क्रिकेट हॉकी ,एथलेटिक्स और पर्वतारोहणके खिलाडियों को दिए गएI

पद्मविभूषण-
मेजर ध्यानचंद  (1956)

पद्मश्री -
बलबीर सिंह (1957)
कुंवर दिग्विजय सिंह (के डी सिंह बाबू )1958
चरणजीत सिंह (1964)
किशल लाल (1966)
प्रिथपाल सिंह (1967)
शंकर लक्ष्मण (1967)
लेजली क्लोडियस (1971)
वासुदेवन भास्करन (1981)
सुश्री एलिजा नेल्सन (1983)
मोहम्मद शाहिद (1986)
सेल्मा जूलियट क्रिस्टीना डिसिल्वा (1991)
अजीत पाल सिंह (1992)
परगट सिंह (1998)
धनराज पिल्लै (2001)
मुकेश कुमार (2003)
दिलीप कुमार टिर्की (2004)
बलबीर सिंह खुल्लर (2009)
इगनेस टिर्की (2010)
जफर इकबाल ( 2012)

आंकड़े- सुरेश कुमार लौ

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