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ओलंपिक अभी बाकी है मेरे दोस्त!

सन्नी गोंड़


लंदन ओलंपिक से शुरू हुआ स्पोर्ट्स क्रीड़ा का सफर रियो ओलंपिक तक पहुंच गया है। रियो ओलंपिक के बाद हमारे पास खुशी मनाने के लिए लंदन ओलंपिक जैसी वजह तो नहीं है लेकिन जैसे ओलंपिक का मोटो है कि जीतने से ज्यादा महत्वपूर्ण है इसमें भाग लेना। और भारतीय दल ओलंपिक में लगातार बढ़ता जा रहा है जो एक अच्छा संकेत मन जा सकता है।  

रियो ओलंपिक तो समाप्त हो गया लेकिन सात से 18 सितंबर तक रियो में ही  एक ओलंपिक अभी शुरू होना बाकी है- पैरालंपिक यानि क्षमता-भिन्न खिलाड़ियों का खेल महाकुम्भ। इस ओलंपिक से आमतौर पर मीडिया हो या आम जनता, अनजान ही रहती है। हांलाकि इसमें भारत दो व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीत चुका है और इस बार इसमें भी अब तक का सबसे बड़ा भारतीय दल जा रहा है। दो महिलाओं सहित कुल 17 लोगों की टीम पैरालंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करेगी।



भारत को ओलंपिक में पहला व्यक्तिगत पदक लाने में 56 साल लग गए और पहला व्यक्तिगत स्वर्ण पदक पाने के लिए तो भारत को 112 साल का इंतजार करना पड़ा था। इसके विपरीत पहले आधिकारिक पैरालंपिक खेल 1960 रोम से शुरू हुए और उसके 12 साल बाद 1972 हैडिलवर्ग में मुरलीकांत पेटकर ने 50 मीटर फ्री स्टाइल 3 तैराकी में स्वर्ण जीत इतिहास रच दिया। पर यह एक ऐसा इतिहास है जो पन्नों में कहीं गुम है। पेटकर उन लोगों के लिए एक आदर्श बने जो किन्हीं कारणों से अक्षम हो जाते हैं। पेटकर बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने 1968 पैरालंपिक में टेबल टेनिस में भाग लिया था और वह दूसरे दौर तक भी पहुंचे थे पर उन्होंने महसूस किया कि वह तैराकी में ज्यादा बेहतर कर सकते हैं। अक्षम होने से पूर्व भारतीय सेना के हिस्सा रहे पेटकर ने हारना तो सीखा नहीं था। तैराकी में वह सोने के साथ लौटे। 1972 हैडिलवर्ग में ही भारत की ओर से अब तक सबसे ज्यादा तीन महिला ने भाग लिया था। पैरालंपिक में प्रथम भारतीय तीरंदाज बनी  पूजा और शॉट पुट में दीपा मलिक अपना हाथ आजमाएंगी।

ओलंपिक में अभी तक केवल सुशील कुमार ही दो व्यक्तिगत पदक लाने में सफल हो पाए हैं पर पैरालंपिक में इससे भी बड़ा इतिहास दर्ज है। 1984 स्टोक मैंडाविल पैरालंपिक भारत का सबसे सफल पैरालंपिक रहा है। इसमें जोगिंदर सिंह बेदी ने तीन पदक (एक रजत और दो कांस्य) गोला फेंक, भाला फेंक और चक्का फेंक में अपने नाम किए। इसके साथ ही इसी साल भीमराव केसरकार ने भी भाला फेंक में रजत जीता। जिस तरह ओलंपिक में हॉकी में हमारा सुनहरा इतिहास रहा है वैसे ही पैरालंपिक में एथलेटिक्स में पीला, सफेद और लाल यानि स्वर्ण, रजत और कांस्य पदक का इतिहास रहा है। 2004 एथेंस पैरालंपिक में  देवेंद्र झझरिया ने भाला फेंक में स्वर्ण जीता ,साथ ही राजिन्दर सिंह राहेलु ने पावरलिफ्टिंग 56 किलोग्राम भारवर्ग में कांस्य जीता। लंदन 2012 में गिरिशा नागाराजेगौड़ा ने ऊंची कूद में कमाल करते हुए रजत पदक  अपने नाम किया।  
पैरालंपिक के शुरुआत की कहानी ओलंपिक के साथ जुड़ी हुई है। डॉ. गुडविंग गुट्टमन्न ने अक्षम लोगों को जीने का नया नजरिया देने के लिए  ओलंपिक के समान ही पैरालंपिक की संकल्पना की । 1948 लन्दन ओलंपिक का आयोजन द्वीतीय विश्वयुद्ध के तुरंत बाद था। द्वीतीय विश्वयुद्ध में तमाम  सैनिक शारीरिक रूप से अक्षम हो गए थे। उन्हीं अक्षम लोगों के लिए खेल दिवस का आयोजन किया गया। इसके सबसे बड़ी खासियत यह थी कि इसका अयोजन 1948 ओलंपिक के पहले दिन उसके साथ ही किया गया। इसमें केवल युद्ध में घायल और व्हीलचेयर के साथ सैनिकों ने ही हिस्सा लिया। इसे 1948 अंतरराष्ट्रीय व्हीलचेयर गेम्स के नाम दिया गया। 1952 में फिर इसका आयोजन किया है इस बार ब्रिटिश सैनिकों के साथ ही डच सैनिकों ने भी हिस्सा लिया। इस तरह इसने पैरालंपिक गेम्स के लिए एक धरातल तैयार किया और 1960 रोम में पहले पैरालंपिक खेल हुए। इसमें सैनिकों के साथ ही आम लोग भी भाग ले सकते थे। पहले पैरालंपिक खेलों में 23 देशों के 400 खिलाड़ियों ने भाग लिया। शुरुआती पैरालंपिक खेलों में तैराकी को छोड़कर खिलाड़ी केवल व्हीलचेयर के साथ ही भाग ले सकते थे लेकिन 1976 में दूसरे तरह के अक्षम लोगों को भी पैरालंपिक में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया।

इस बार भारतीय मीडिया ने ओलंपिक की काफी अच्छी कवरेज की। अब जरूरत इस बात की है कि पैरालंपिक को भी वह आम जनता व सरकार तक पहुंचाए। जिससे वे भी मुख्य धारा में शामिल हो विकास की राह पर अग्रसर हो सके। 

रियो पैरालंपिक के लिए भारतीय दल-  अंकुर धामा (1500 मी दौड़), मारियप्पन टी (ऊंची कूद), वरुण सिंह भाटी (ऊंची कूद), शरद कुमार (ऊंची कूद), राम पाल (ऊंची कूद), सुंदरसिंह गुर्जर (भाला फेंक), देवेन्दर (भाला फेंक), रिंकू (भाला फेंक), संदीप (भाला फेंक), नरेन्द्र (भाला फेंक), अमित कुमार (क्लब थ्रो, चक्का फेंक), धरमबीर (क्लब थ्रो), दीपा मलिक (शॉट पुट), नरेश कुमार शर्मा (निशानेबाजी), फरमान बाशा (पॉवरलिफ्टिंग), सुयश नारायण जाधव (तैराकी), और पूजा (तीरंदाजी)।  

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