भगवान स्वार्थी नहीं होते
अगर सचिन भगवान है तो उन्हें केवल अपने बारे में नहीं सोचना चाहिए। क्योंकि भगवान केवल खुद के बारे में नहीं सोचते।
अभी हाल ही ओ माई गाड फिल्म आई है। इस फिल्म में कहानी का मुख्य पात्र परेश रावल भगवान को ही कठघरे में खड़ा कर देता है। लेकिन कुछ दिनों पहले क्रिकेट के भगवान माने जाने वाले सचिन तेंदुलकर पर भी उनके सन्यास लेने के लिए ऊंगलिया उठ रही थी। जिसने उनके सन्यास को लेकर बात की वे बाद में अपनी ही जुबान से पलट गए। मैं बात कर रहा हूं संजय मांजरेकर की। जिन्होंने कमेंट्री के दौरान सुनिल गवास्कर की इस बात पर सहमती जताई थी कि सचिन पर उम्र हावी होने लगी है और उन्हें अब अपने सन्यास के बारे में सोचना चाहिए। लेकिन ज्यों ही बात मीडिया तक पंहुची। वे अपनी बात से ही मुकर गए। तो क्यों कोई भी सचिन के सन्यास की बात करने से बचता है या ये बात कहकर अपनी जान बचाता है। कि वे अपने सन्यास के बारे में खुद ही सोचेंगे। दरअसल यह क्रिकेट के भारी बाजार का मामला है जहां बाजार की शक्तियां यह तय कर रहीं हैं कि टीम का स्वरूप क्या हो।
भारत में क्रिकेट को धर्म का दर्जा दे दिया गया है। अगर क्रिकेट धर्म है तो सचिन उसके भगवान है। उनको भगवान बनाने के पीछे सबसे बड़ा हाथ मीडिया का है। अगर सचिन शतक लगाते हैं और भारत मैच हार जाता है। तो खबर शतक ही बनती है। क्योंकि भगवान की आलोचना करने से वे खुद भी बचते हैं। मीडिया ने सचिन का इतना गुणगान किया की उन्हें उन्हें जमीन के इनसान से आसमान का भगवान बना दिया।
अब भारत जैसे देश में जहां धर्म को लोग इतनी गंभीरता से लेते हैं। वहां उनके भगवान पर कोई ऊंगली कैसे उठा सकता है। भारत में बहुत ही कम ऐसे लोग है जो सचिन के सन्यास पर खुल कर बोलते हैं। बाकि सभी उनके ऊपर कोई भी टिप्पणी करने से बचते हैं। शायद उनके बारे में पूर्व खिलाड़ी इसलिए भी बोलने से बचते हैं क्योंकि उन्होंने जो उपलब्धि हासिल की है। उसके आस-पास भी कोई नहीं है। लेकिन इससे फिर क्या यह समझा जाए कि कोई भी सचिन की आलोचना नहीं कर सकता?
जहां तक विदेशी खिलाडियों की बात है उनको ज्यादा दोष नहीं दिया जा सकता। क्योंकि वे भी जानते हैं कि भारत में क्रिकेट के बाजार बहुत बड़ा है। अगर उन्हें इसका हिस्सा बनकर रहना है तो क्रिकेट के भगवान से बैर नहीं लिया जा सकता।
बोर्ड भी सचिन को न तो बाहर कर सकता है और न ही उनके बारे में कुछ भी आलोचात्मक बोल सकता है। किसी दूसरे खिलाड़ी की बात हो तो बोर्ड इशारों ही इशारों में उनको जता देता है कि अपना बोरिया बिस्तर बांध लो नहीं तो बेआबरू होकर निकाले जाओगे। अपनी इज्जत बचाने के लिए खिलाडियों को सन्यास लेना ही पड़ता है। वहीं दूसरी ओर सचिन अगर तैयार तो उन्हें मैच से बाहर करने की हिम्मत कोई नहीं दिखा सकता। वह तभी मैच में नहीं होते जब उनका खुद का मन नहीं करता।
अब सवाल यह उठता है कि सचिन आखिर कब सन्यास लेंगे। इस साल उनका अगर औसत देखा जाए तो वह कोई अच्छा संकेत नहीं दे रहा। इस सभी के साथ एक सवाल और उठता है कि क्या भगवान केवल अपने बारे में ही सोचते हैं। अगर भगवान केवल अपने बारे में ही सोचेंगे तो वे स्वार्थी कहलाएंगे और भगवान स्वार्थी नहीं होते। इसमें कोई दो राय नहीं की सचिन ने पिछले 23 सालों में क्रिकेट की जिन ऊंचाईयों को छुआ है। वहां तक आने वाले समय में भी किसी के लिए पहुंचना लगभग नामुमकिन हैं। लेकिन धरती पर भगवान भी हमेशा के लिए नहीं होते। कभी न कभी सभी को अपनी जगह छोड़नी ही पड़ती है। कोई भी यह नहीं चाहेगा की जिसको वे भगवान की तरह मानते हैं उसे बेआबरू होकर निकलना पड़े। सचिन क्रिकेट के भगवान है। तो उन्हें खुद के बारे में न सोचकर आने वाले कल यानी भविष्य के बारे में सोचना चाहिए। जब वे ऐसा करेंगे तभी सही मायने में वे भगवान कहलाएंगे। क्योंकि भगवान हमेशा दूसरों को बारे में सोचते हैं।
सन्नी कुमार गोंड़
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