Ads

Ads
Ads

मोलिडंग सिस्टम- कहानी

   
अलका सिन्हा

रंजन का फोन आया था। खुशी से चहकते हुए उसने बताया कि वह थाइलैंड गया था और ताइक्वांडो में उसने थाइलैंड को हराकर रजत पदक जीता है। 'स्वर्ण क्यों नहीं? मीठे उलाहने से मैंने पूछा। 'ये तो पहला मौका था भाभी, दिसंबर में चीन के साथ मैच है, तब स्वर्ण जीतूंगा। उसकी आवाज का आत्मविश्वास मुझे गौरवांवित कर रहा था। रंजन मेरी चचेरी सास का बेटा है। ये लोग दिल्ली में रहते हैं। वैसे मेरी ससुराल पटना में है जहां मेरे ससुर अपने दो अन्य भाइयों के साथ रहते हैं। इन परिवारों में कोई भेदभाव नहीं है। नई-नई ब्याहकर आई तो सबकी प्रिय भाभी बन गई। मुझे भरपूर प्यार मिला।

रंजन ने इसी साल बारहवीं की परीक्षा दी थी, मगर उसकी रुचि पढ़ाई से ज्यादा ताइक्वांडो में थी। वह मार्शल आर्टस में ही कुछ करना चाहता था। उसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर की यह विजय उसके सपनों का मार्ग प्रशस्त कर रही थी। मैं उसकी इस प्रतिभा से अभी तक अपरिचित थी। परिवार में सदा उसके न पढ़ने की ही चर्चा होती थी। उसके इस रूप का तो मुझे आज ही पता चला था। मेरे लिए यह इतनी बड़ी खुशी थी कि मैं विश्वास नहीं कर पा रही थी कि मेरे परिवार का भी कोई बच्चा इतनी बड़ी जीत हासिल कर सकता है। मैने उसे इतवार को घर आने का निमंत्रण दिया ताकि हम जीत का जश्न मना सके। अपना पदक, अखबार की कटिंग्स और फोटो वगैरह लिए रंजन तफसील से वहां की कहानी बता रहा था कि कितने देशों ने इसमें हिस्सा लिया था, इस खेल में कितना जोखिम है और इसे कैसे खेला जाता है।

'भाभी इसमें आवाज का बड़ा महत्व होता है। साउंड प्वाइंट के साथ ही हिट करना होता है। वोई.....। हाथ लहराकर वह मुझे उसकी बारीकियां समझा रहा था। मैं उसकी अदाओं पर मुग्ध हो रही था। 'तुमने हमारे पूरे खानदान का नाम रौशन किया है। अखबार की कटिंग्स उसे देते हुए मैंने कहा कि मुझे इनकी फोटो कॉपी चाहिए। मैं अपनी फाइल में रखूंगी। मैं जानती थी कि यह तो शुरुआत है, अब तो अखबारों की ऐसी कितनी ही कटिंग्स होंगी, तो फाइल खोल ही ली जाए। 'तुम्हारे जाने-आने की व्यवस्था तो सरकार ने की होगी। अब खुशी के साथ जिम्मेदारियों ने भी जगह बना ली थी। 'नहीं भाभी एक निजी कंपनी ने  सारी व्यवस्था की थी, उसने बताया कि बीस हजार रुपए देकर उसने अपना रजिस्ट्रेशन कराया था। इसी में आना-जाना खाना-पीना सभी शामिल था। 'और इनाम के पैसे? 'मेरे हिस्से में तो ये पदक आया बस, पैसे तो सब उसी कंपनी को गए। इस घटना के बाद से रंजन से मेरी आत्मीयता और बढ़ गई। अक्सर ही उसका फोन आता या फिर मैं ही उसका नंबर मिला लेती। 'अपने खाने-पीने पर ध्यान रखा करो रंजन, मैं उसे स्वास्थ्य संबंधी हिदायते देती रहती जिससे वह अपनी शक्ति पूरा इस्तेमाल कर सके।

बारहवी का परिणाम आया था। उसके 48 प्रतिशन नंबर आए थे। 'चिंता मत करों खिलाडियों के लिए रिजर्वेशन होता है। मैने उसका हौसला बढ़ाया। वह आगे पढ़ने का इच्छुक नहीं था। फिर भी मेरी सलाह पर उसने ओपन युनिवर्सिटी में नाम लिखवा लिया। 'भाभी, मैने दिल्ली नगर निगम में आवेदन किया है। आप कोई  सोर्स लगवाइए न। रंजन का एक दिन फोन आया। 'बिना ग्रेजुएशन के किस पद के लिए आवेदन किया है देवर जी। 'क्लास फोर्थ कर्मचारी के लिए। मुझे काठ मार गया, मगर किसी तरह संयत होकर उसे  समझाया। 'कुल चार महीने भी नहीं बचे थे। तुम्हारे चीन वाले मैच में उसकी तैयारी करो। मेरी बात पर वह खोखली हंसी हंस पड़ा, 'मैं नहीं जा रहा चीन-वीन कहीं। नहीं जा रहे का क्या मतलब? 'मै लगभग चीख पड़ी। तुम्हारी जिंदगी अब सिर्फ तुम्हारी नहीं है, 'इस देश का भी हक है तुम पर। और मेरी ट्रेनिंग का खर्चा कौन देगा? 'सरकार देगी। वह हंस पड़ा। सरकार!....कौन सी सरकार? वह किस दुकान पर मिलती है?

मैने टेलीफोन डायरेक्टरी से देखकर भारतीय खेल प्रधिकरण के अधिकारी का नंबर मिलाया। उससे कहा कि ताइक्वांडो का एक खिलाड़ी है। उसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रजत पदक जीता है। उसे दिसंबर में चीन के साथ खेलना है। क्या उसके प्रशिक्षण और चीन भेजने की कोई सरकारी व्यवस्था की जा सकती है? जवाब में मिले बड़े ऊलजलूल सवाल। 'क्रिकेट-विकेट की जानकारी तो दे सकता हूं मैडम, लेकिन यह तो मार्शल आर्टस का विषय है। जो साहब इस काम को देखते हैं। वो विदेशी टूर पर गए हैं। इसके बारे में आपको ऊपर बात करनी होगी। वैसे इसने अपनी बेसिक ट्रेनिंग कहां से ली? हम लोग तो किसी खिलाड़ी को फस्र्ट स्टेज से ही अपनी कोचिंग देते हैं। उसे थाइलैंड किसने भेजा था... आप उसी से संपर्क क्यों नहीं करते? खैर, सरकार को गोली मारो। मैं खुद ही उसे चीन भेजने का व्यवस्था करुंगी। स्वर्ण पदक  हमारे ही हिस्से आएगा।

मैंने तय किया और पूरे उत्साह के साथ फोन किया। 'सुनो तुम चीन जरूर जाओगे और तुम्हारे टिकट की व्यवस्था मैं करूंगी। बिना कुछ सोचे-समझे ही कह दिया मैंने। ख्याल ही नहीं किया कि मेरी इस बात से उसकी खुद्दारी को ठेस लगेगी। 'उसकी बात नहीं है भाभी, उसने तीखी आवाज में कहा तो मुझे अपनी भूल का अहसास हुआ। 'ये तुम्हारी पिछली जीत का इनाम है, मैंने बात संभालने की गरज से कहा और सुनों स्वर्ण जीतने के बाद सिल्क की साड़ी भी लूंगी तुमसे, फोकट में नहीं छूटोगे इस बार। 'आपकी बात पूरी कर सकता तो जरूर करता भाभी, पर मैं नहीं जा रहा खेलने। मैं तय कर चुका हूं। आवाज में पूरी –दृढ़ता थी, बहस की कोई गुंजाइश नहीं थी। मेरा सारा उत्साह थम गया। इस घटना के बाद कुछ समय बीत गया। बीच में एकाध बार रंजन का फोन आया था। पर कुछ खास खबर नहीं, रोजमर्रा की ही बाते वह करता। वह ताइक्वांडो की प्रैकिटस करने जनकपुरी आता था जो कि उसे दूर पड़ता है। इसलिए उसने एक बाइक खरीद ली है। मैंने कहा, 'अब तो बाइक वाले  हो गए हो, कभी यहां भी आ जा, क्लास के बाद। मगर वह नहीं आया। मेरे बुलाने मे भी वह उत्साह नहीं था और उसके पास भी समय कहां था।

मौसम बदल गया था। कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी। आज तबीयत कुछ ठीक नहीं थी। ऑफिस नहीं गई, रजाई में दुबकी पड़ी थी। अचानक मोबाइल बजने लगा, मगर जब तक मैं रजाई से निकली और फोन उठाती, तब तक फोन कट चुका था। चश्मा लगाकर देखा तो रंजन की मिस्ड कॉल थी। 'हैलो रंजन फोन किया था? मैंने रंजन को फोन मिलाया। 'भाभी, एक खुशखबरी है। आपको किस दिन का इंतजार था बताइये, उसने उल्लासित आवाज में कहा तो निगाह अचानक ही कैलेंडर पर चली गई। 22 दिसंबर यही वह महीना था जिसमें रंजन का चीन के साथ मैचथा। यही वह महीना था। जिसका मैं कभी बेसब्री से इंतजार करती थी। जरूर चीन से लौटा होगा, खेल में जीतकर। भाभी अबकी बार स्वर्ण मारूंगा। मेरे कानों में उसके शब्द गूंजने लगे। मैं जानती थी वह मेरी बात को नहीं टाल सकता। 'जब भी कहो, मैं छुट्टी ले लूंगी। 'तो शुक्रवार रख लूं? 'रख लो भई मगर खुशखबरी तो सुनाओ। मै व्यग्र हो रही थी।

आंखे देख रही थीं कि समूचे संसार के ऊपर रंजन गले में स्वर्ण पदक पहने खड़ा है। दुनिया समवेत स्वर में पुकार रही है। रंजन....इंडिया.... रंजन....इंडिया। 'भाभी मैंने अपना काम शुरू कर दिया है, क्रॉकरी का। 'क्या.? मैने वो नौकरी छोड़ दी। मैं किसी के नीचे काम नहीं कर सकता था, 'वह बता रहा था, अपनी बाइक बेच कर मैंने एक मोलिडंग मशीन खरीदी है, उससे बर्तन बनेंगे। मुहूर्त पर आपका आना जरूरी है। भाभी......उसके स्वर में उल्लास था, पांच हजार कटोरियों का आर्डर मिला है। मशीन का खर्चा तो इसी में निकल जाएगा।
'इसका मोलिडंग सिस्टम गजब का है भाभी, वह मुझे इसकी बारिकियां समझा रहा था। 'मशीन में फाइबर पाउडर डालो और मिनट-भर में वह कटोरियों की शक्ल में बाहर। मैं देख रही थी कि रंजन का चेहरा कटोरी की शक्ल में बदलता जा रहा है। उसके हाथ-पैर सब कटोरियों में बदलते जा रहे हैं। 'तो शुक्रवार सुबह दस बजे ठीक रहेगा न भाभी? वह पूछ रहा था। योइ.......योइ.........योइ........ मोलिडंग मशीन बड़ी तेजी से चल रही थी, मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था।

(लेखिका चर्चित कवयित्री भी हैं। प्रस्तुत कहानी उनके नवीन कथा संग्रह 'मुझसे कैसा नेह से ली गई हैं।)

No comments: