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हंगामा है क्यों बरपा...........



व्यंग्य

कुलविंदर सिंह कंग 

पिछले दिनों एक टीवी चैनल ने वो क्या कहते हैं स्टिंग आपरेशन करके कुछ क्रिकेट अंपायरों को गुप्त रूप से कैमरे में कैद करके सरेआम टीवी पर दिखा दिया। अंपायरों से किसी खास खिलाड़ी को फेवर करने के लिए कहा गया था। क्रिकेट मैचों में अंतिम निर्णय अंपायरों के हाथ में होता है। इसलिए ज्यादातर अंपायर मान भी गए। मानना ही था घर बैठे बिजनेस जो आ रहा था। चैनल वाले ब्रेकिंग न्यूज दे रहे थे 'मैच फिक्सिंग! अरे भाई! ये मैच फिक्सिंग कैसे हुआ? ये तो अंपायर फिक्सिंग हुई। वैसे बेचारे ये अंपायर तो हालात की वजह से पहले से ही फिक्स हैं। पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका क्रिकेट बोर्ड्स के पास पैसे तो हैं नहीं। अंपायरों को फीस भी वक्त पर नहीं मिलती। वहां के क्रिकेट बोर्ड तो खुद बेचारे हार्ड बोर्ड हो रहे हैं। बोर्ड की सूखी पिच की घास भी उड़ी हुई है। कोई ढंग की टीम खेलने नहीं आती..... स्टेडियम की कुर्सियों पर तो कबूतरों की बीटें पड़ी हैं।

इस संकट की घड़ी में बेचारों अंपायर अपने कठिन परिश्रम से उपर की आमदनी को अगर टेबल के नीचे से लेने का प्रयास कर भी रहे थे तो इसमें बुरा भी क्या है? फेस्टीवल सीजन में सबके साथ-साथ अंपायरों को भी छूट मिलनी चाहिए। अपने बच्चों और एक अदद खर्चीली बीवी का भार उठा सके। मैच के बाद होटल के रूम में जो गर्लफ्रेंड बुला रखी है उसका खर्चा भी अंपायरों को अपनी मेहनत से निकालना पड़ता है। अब आप क्या चाहते हैं कि सारा दिन मैदान पर खड़ा रहने वाला अंपायर होटल के कमरे में जाकर आराम से 'शांति के साथ लेट भी न सके? धिक्कार है आपकी ऐसी सोच पर। मै यहां अपको बता दूं कि किसी भी तरह की फिक्सिंग में कोई भी बुराई नहीं है बल्कि इसके बाद खिलाड़ी या अंपायर सजग हो जाते हैं, जुबान के पक्के हो जाते हैं, जो कह के गए हों वो कर दिखाते हैं। अंपायर तो फील्डर की हल्की सी अपील पर ही उंगली आसमान की ओर उठा देते हैं। यहां न्यूटन का सिद्धांत भी फेल हो जाता है कि गुरुत्वाकर्षण के कारण हर गिरी हुई चीज नीचे की ओर आती है, यहां चंद नोटों के बदले गिरे हुए अंपायरों की उंगली उपर की ओर चली जाती है। इनका तो हर बार उंगली उठाने को हाथ उठ सा जाता है, फिर इन्हें आभास होता है कि यार अभी किसी ने अपील तो की ही नहीं, फिर इन बेचारे अंपायरों को गुदी के पीछे बालों में खाज करने का नाटक करना पड़ता है। एक फिक्सिंग में दो-दो परफार्मेंस! अंपायरिंग भी और नाटक भी। अंपायरों का काम कितना रिस्की होता है इतने लोगों, कैमरों, लाइटस के बीच में ये कलाकारी दिखानी पड़ती है वो भी सिर्फ एक पेटी या एक खोखे जैसी तुच्छ रकम के लिए। 'हैटस आफ दू दीज अंपायर्स।

आजकल बल्लेबाजों के लिए ही नहीं अंपायरों के लिए भी क्लोज फीलिडंग लगी रहती है। जैसे होकाई, हाट स्पाट, स्नीकोमीटर, एक्शन रिप्ले, यूडीआरएस और लसिथ मलिंगा जैसे गेंदबाजों की अपील का पंगा। अंपायर पर इतना प्रैशर कि जैसे अंपायर की पूरी बॉडी का ही चारों तरफ से एक्यूप्रैशर किया जा रहा हो। इतने प्रैशर के बाद जब अंपायर हर अपील पर उपर की ओर उंगली उठाने लगे तो इसका मतलब होता है कि भई मुझे नहीं पता आउट है या नहीं। मैंने तो उंगली उठानी थी सो उठा दी अब यह उपर वाला जाने। अब बात भी सही है जब सारा सिस्टम ही भगवान भरोसे चल रहा हो तो क्या अंपायर प्रभु का आसरा नहीं ले सकता?

आजकल हर चीज पैसा मांगती है इसलिए ये फिक्सिंग भी लीगल कर देनी चाहिए। अंपायरों को भी एक्स्ट्रा आमदनी की जरूरत पड़ती है। शादी करके अपनी बीवी के साथ लंबे और बोरिंग ड्रा टेस्ट मैच खेलने के साथ-साथ कभी कभार बाहर जाकर टी-20 मैच खेलने को भी हरेक आदमी का मन करता है। बीवी की भावनाओं को देखने के साथ-साथ बाहरी संभावनाओं को भी तलाशना पड़ता है। दशहरा बीत गया है लेकिन ऐसे लोगों के मन का रावण अभी भी जिंदा है। मन के रावण को ही मार लेंगे तो फिर इनके घरों में दिवाली और क्रिसमस कहां से मनेगी।



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