साल भर का राशिफल
कुलविंदर सिंह कंग
व्यंग्य
ज्योतिषी लोग भविष्य का हाल बताकर उसके उपाय बताते हैं हम लोग रिवर्स किक वाले जो ठहरे, इसलिए बीत रहे साल 2012 में खेलों का हाल बता रहे हैं। हम उल्टे ही चलते हैं।
ये साल लंदन ओलंपिक की वजह से खेल संघों के अधिकारियों और उनके चमच्चों के लिए घूमंतू वर्ष रहा। चार सालों में एक बार राहु केतु की दशा कमाई की ओर संकेत करती है और सितारे पूरी शिद्दत के साथ चमकते हैं। ऐसे ताकतवर सिंह राशि वालों की कृपा से कुछ सिफारिशी खिलाड़ी और अधिकारी भी लंदन जानेवाले जहाज की पूंछ पर लटक लिए। इनके लिे 2012 का राशिफल बहुत बढ़िया रहा क्योंकि राशि लगी सरकार की फल मिला इन्हें। हो गया राशिफल हर ओलंपिक में जाने वाले ये बिच्छु जातक के अधिकारी सबसे आगे। खिलाड़ी जाए या न जाए... या भाड़ में जाए.. इन्हें क्या। ये तो सबसे पहले लंदन वाले जहाज की सीट पर जा धंसे अगले दिन सुबह लंदन में हवाई जहाज वालों ने सीट पर से खींच-खींच कर इन्हें उठाया क्योंकि रात को फ्री की जरा ज्यादा ही गटक ली थी।
सबका भाग्य एक सा नहीं होता जब ओलंपिक में जाने वालों की लिस्ट में से कुछ नाम काटने पड़े तो शनि का प्रकोप आदमियों के नामों पर ही पड़ा क्योंकि हमेशा बकरा ही बलि चढ़ता जाता है। किसी ने आज तक बकरी की बलि सुनी है। कन्या राशि वाली इन बकरियों में से जिस किसी को भी अपना नाम कटता दिखा होगा उसने ही आकाओं के सामने आंसू गिराते हुए प्यार से मिमिया दिया होगा। बस तड़ से उन्हें आकाओं के बगल वाली सीट मिल गई होगी।
इस लिस्ट में अगर कुछ लोगों के नाम कटे तो उसके लिए मीन राशि वाले जिम्मेदार होते हैं। ये लोग स्वभाव से ही मीन मेंटेलिटी के होते हैं और प्रत्येक विभाग या मंत्रालय के फाइनेंस विंग में सिर्फ अडंगा लगाने के लिए कलम घिसते हैं। आप खावे ना खावण देवे, जसौदा मैया तेरा लाडला। फाइनेंस विंग वाले चारों तरफ से विंग बना बनाकर फाइल या प्रोपोजल पर अटैक करते हैं, जिससे कई हमारे जैसे बलि चढ़ जाते हैं।
हॉकि वालों के लिए वर्ष 2012 की अच्छी शुरुआत के बावजूद भी ये वर्ष बेहद खराब रहा। भारतीय हाकी साल के शुरू में अपनी ही धरती पर क्वालीफाईंग राउंड में शिकार करके अपने को धुरंधर शिकारी समझने लगी। लेकिन ओलंपिक जैसे घने जंगल में जाते ही पोल खुल गई। लंदन ओलंपिक की नीली शिकार गाह में इतने नील पड़े कि आज तक गिनती नहीं हो सकी। हमारी तो पुरानी हॉकी रूपी बंदूकों में तो इतना जंग लगा था कि एक भी गोली ढ़ंग से न दागी गई। बड़े-बड़े शिकारी और उनकी गोलियां ढुस्स हो गई और चारों सरफ से बरसी गोलियां आ आकर सीधे हमें चीरती गई। बाहर निकलने का रास्ता दिखना बंद हो गया। कई बार तो भारतीय हॉकी खुद चलकर गोली की सीध में हो जाती थी। अंग्रेजों के घर में सभी टीमों ने हमसे लगान वसूला। पिछले तीन दशकों में अगर हमने गलती से भी किसी टीम को हराया था तो क्षमा याचना सहित हार कर पुरानी किश्त ब्याज सहित लौटाई। किसी को ही नाराज नहीं किया। खुद ही जाकर पैंदे में लेट गए। माइकल नोब्स और हॉकी इंडिया भी खुश चलो एक भी मैच नहीं जीते बड़ी अच्छी बात है। कहीं गलती से एकाध मैच जीत जाते तो इंक्वायरी बैठानी पड़ती कि भइया किस खिलाड़ी की गलती से जीते। सबसे पहले उसे ड्रॉप करो।
कई मकर जात वाले मक्कार लोग लंदन में मटरगश्ती करके लौटते हुए खुशी से ढोल नगाड़े बजा रहे थे। देखा इस बार सौ प्रतिशत तरक्की। बीजिंग में तीन मैडल थे अब की बार छह मैडल लाए है, सौ प्रतिशत प्रोग्रेस। पीछे-पीछे बेचारे खिलाड़ी भी तालियां पीट रहे थे और करते भी क्या। अब इनको तो पीट नहीं सकते थे। क्योंकि आगे भी ओलंपिक गेम्स होने हैं और इनको भी रियो दिखाई दे रहा है।
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