एक नई शुरुआत की कोशिश
सन्नी गोंड़
भारत में खेल आज के
समय में क्रिकेट की धुरी के इर्द-गिर्द घूम रहा है। भारत में खेल का पर्याय क्रिकेट ही बन गया है। इसी धुरी को बदलने और भारत में दूसरे खेलों को
आगे लाने के लिए पहली बार हॉकी इंडिया लीग की शुरुआत की गई। दिल्ली, मुम्बई,
पंजाब, रांची और उत्तरप्रदेश पांच टीमे बनाई गई। वैसे तो 6 टीमें बननी थी। लेकिन
बैंगलौर की टीम को कोई खरीददार नहीं मिला। आईपीएल की तर्ज पर इसमें भी देशी और
विदेशी खिलाड़ियों का मिश्रण किया गया। सभी टीमों की ओर से दस विदेशी और 14 देशी
खिलाड़ियों को इस प्रतियोगिता में भाग लिया। यह प्रतियोगिता लोगों में कितना
लोकप्रिय हो पाई यह अलग बात है सबसे जरूर बात है कि एक कोशिश की गई है जिसकी
सराहना की जानी चाहिए।
एक समय हुआ करता था
जब हॉकी को लेकर लोगों में उत्साह देखने को मिलता था। साथ ही विश्व हॉकी के पटल पर
भारतीय हॉकी टीम की तूती बोलती थी। हॉकी हमारे देश का राष्ट्रीय खेल है या नहीं इस
बात में भले ही असमंजस हो लेकिन इस बात से कोई भी असहमत नहीं होगा कि पहले हॉकी
में विश्व भारत का लोहा मानता था। ओलंपिक खेलों में भारत ने हॉकी में कई कीर्तीमान
स्थापित किए हैं। लेकिन आज के समय में हॉकी ने अपनी पुरानी पहचान खो दी है।
1928 ओलंपिक
प्रतियोगिता में भारत ने हॉकी में अपना पहला स्वर्ण पदक जीता। उसके चार साल बाद
यानी 1932 में भारतीय क्रिकेट ने अपना पहला आधिकारिक मैच खेला। अस्सी के दशक तक
विश्व में भारतीय हॉकी ने राज किया और उसी के आस-पास भारतीय क्रिकेट ने उचाइयों की
ओर कदम बढ़ाए। हॉकी के खेल में अंतिम बार ओलंपिक में भारत ने 1980 में पदक जीता
था। उसके तीन साल बाद क्रिकेट में भारत ने विश्व कप जीता। उसके बाद जहां हॉकी
लगातार नीचे की ओर गिरता गया वहीं क्रिकेट ने बुलंदियों को छुआ। आज आलम यह है कि
आईपीएल जैसी प्रतियोगिता पैसे के मामले में विश्व में दूसरे नंबर की प्रतियोगिता
है।
आज हॉकी की हकीकत यह
है कि उसने जनाधार के साथ ही जीत की ललक भी खो दी है। पिछले साल हुए ओलंपिक में
भारत ने जैसे-तैसे क्वालीफाई तो कर लिया लेकिन मुख्य आयोजन में भारत का प्रदर्शन
काफी निराजनक रहा था।
हॉकी में भारत ने
भले की बुरा प्रदर्शन किया हो लेकिन पिछले साल का ओलंपिक भारत के लिए अब तक
सवार्धिक सफल रहा। इससे इस बात के संकेत मिले कि भारत क्रिकेट की छाया से निकल रहा
है। दूसरे खेलों की भी चर्चा आम लोगों के बीच होने लगी। ओलंपिक विजेताओं का लोगों
ने खुले मन से स्वागत किया। आम जनता को भी यह लगने लगा कि क्रिकेट को छोड़कर दूसरे
खेलों को भी आगे लाने की कोशिश करनी चाहिए। पर साथ ही सवाल यह उठा कि क्या दूसरे
खेलों के प्रति लोगों का यह नजरिया बरकरार रहेगा?
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