प्रयोजन के आभाव का दंश झेलती महिला क्रिकेट
स्मिता मिश्र
कहा जाता है कि भारत
में क्रिकेट को धर्म का दर्जा हासिल है। अगर क्रिकेट धर्म है तो उसके हर संस्करण
की पूजा होनी चाहिए। लेकिन क्या ऐसा होता है। पुरुष क्रिकेट को देखने के लिए लोग
हर हद पार करने के लिए तैयार हैं। उसकी टिकट लेने के लिए भले ही रात भर लाइन में
खड़ा होना पड़े तो उसके लिए भी लोग तैयार हैं। लेकिन इसके विपरीत अगर महिला
क्रिकेट की बात की जाए तो उनके मैचों में ज्यादातर स्टेडियम खाली ही रहते हैं। न
सड़कों पर उनकी चर्चा होती है और न ही उनकी हार जीत पर घंटों बहस होती है। तो कैसे
इसे क्रिकेट को धर्म कहा जा सकता है? इस लिहाज से तो पुरुष
क्रिकेट को ही धर्म माना जाना चाहिए।
हाल फिलहाल में भारत में महिला क्रिकेट वर्ल्ड कप चल रहा है। 31 जनवरी को
इस प्रतियोगिता का पहला मैच खेला गया था। शायद ही कोई ऐसा अखबार हो जिसमें इसकी
खबर पहले पन्ने पर छपी हो। लेकिन आईपीएल में कौन खिलाड़ी कितने में बिका और कौन
नहीं बिका यह बताने के लिए कई अखबारों ने अपना पहला पन्ना उन्हें दे दिया। एक ओर
महिला क्रिकेट की सबसे बड़ी प्रतियोगिता और दूसरी और आईपीएल। लेकिन अहमियत आईपीएल
को ही दी गई है।
महिला क्रिकेट के समुचित विकास न होने के पीछे मीडिया कवरेज की कमी और
जनरुचि का अभाव मुख्य कारण है। मीडिया प्रसारण की कमी होने के कारण मीडिया प्रसारण
अधिकार खरीदे नहीं जाते। अन्य महिला खेलों की तरह भारत में महिला क्रिकेट का
प्रसारण फ्री टू एयर चैनल पर ही होता है। जबकि पुरुष क्रिकेट के प्रसारण अधिकार
खरीदने में चैनल ऊंची से ऊंची बोली लगाते हैं। जरूरत है कि बीसीसीआई इसके लिए
ईमानदारी से प्रयास करे। पुरुष क्रिकेट के साथ महिला क्रिकेट प्रतियोगिता को भी
साथ ही पैकेज करे।
आज के समय में प्रयोजन और पैसे के अभाव की मार महिला क्रिकेट झेल रही है।
सरकारी और कॉरपोरेट मदद भी उपलब्ध नहीं है। खेल का स्तर तो बढता जा रहा है। किंतु
पैसा नहीं बढ़ रहा। आज भी महिला क्रिकेटर खेल से प्यार के नाते ही खेलों में हैं
पैसे के लिए नहीं। इसी सिलसिले में महिला खेल प्रशासकों की नगण्य संख्या का होना
भी मुख्य कारण है। जरूरत इस बात की है कि बीसीसीआई महिला पदाधिकारियों की पर्याप्त
एवं सार्थक उपस्थिति बोर्ड में सुनिश्चित करें। जमीनी स्तर से रणजी के स्तर तक
नवीन प्रतिभाओं को आर्थिक प्रोत्साहन प्रदान करें। साथ ही मीडिया भी राष्ट्रीय एवं
अंतरराष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ियों को ब्रांड बनाने में अपनी भूमिका निभाए ताकि
आईसीसी टॉप रैंकिंग होने के बावजूद किसी झूलन गोस्वामी और मिताली राज को पहचान
बनाने के लिए संघर्ष न करना पड़े।
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