कुर्सी का खेल
कुलविंदर सिंह कंग
कुर्सी के खेल का सबसे अहम और पवित्र कार्य होता है आयोजन का खूंटा गाड़ना।
ये खूंटे कई प्रकार के होते हैं जैसे राष्ट्रमंडल खेल, एशियाई खेल, राष्ट्रीय खेल
और एफ्रो एशियाई खेल। इनका खूंटा गडने की देर है बस! सरकार को देश की इज्जत
के नाम पर एक दुधारू भैंस लाकर उस खूंटे के साथ बांधनी ही पड़ती है और फिर जिसे
कुर्सी के ये खिलाड़ी बड़े प्यार से सहला-सहला कर दुहते है। इतने प्यार से कि देश
तो क्या बेचारी भैंस तक को भी पता नहीं चलता कि ‘कब दुह ली गई’। देश को तो तब पता चलता
है जब इन दुहने वालों को सीबीआई वाले ‘सूतने’ लगते हैं।
विश्व में सबसे ज्यादा आमदनी की संभावनाओं वाला आसान खेल यानी कुर्सी का
खेल और बस! जिसमें होती है सिर्फ और सिर्फ नोटों की रेलम पेल और बाद
में अक्सर जेल। कुर्सी की तरह इस पर बैठने वालों की भी चार टांगे होती है। दो
टांगे तो साफ दिखाई देती है लेकिन बाकी दो अदृश्य टांगे अपने विरोधियों के काम में
अड़ंगी लगाने के काम आती है जिसका या तो इनको पता होता है या फिर वो ‘टांग’ उनको महसूस होती है
जिनके काम में ये टांग अटकती है।
आयोजन रूपी खूंटे पर बंधी दुधारू भैंस को दुहने के लिए कलाकारी के साथ-साथ
दबंगई भी काम आती है। अपनी लाठी के दम पर जो भैंस को दुह ले जाए वो ही कुर्सी के
खेल का अक्षय कुमार होता है, यानी सबसे बड़ा खिलाड़ी। यहीं से ये मुहावरा बना होगा
कि “जिसकी लाठी उसकी भैंस”। खिलाड़ी की टांगों की
तरह यहां लाठी भी दिखाई नहीं देती। लेकिन विरोधियों को दिन में तारे जरूर दिखाई दे
जाते हैं।
इसमें एक बात का जरूर ध्यान रखा जाता है कि बड़े खूंटे पर बंधी दुधारू भैंस
पर मीडिया सहित सबकि नजर लगी रहती है। अत: बड़े प्यार से बचते हुए,
पीत पतरकारों को शांत रखते हुए सदैव मुस्कुराते हुए दुहने की क्रिया को आयोजित
किया जाता है।
दुहने वाले बड़े और मुख्य ग्वालों की एक खास चोकड़ी होती है जो रिश्वत की
दफ्तरी प्रक्रिया की तरह मलाई युक्त गाढ़े दूध को भैंस के नीचे से एकत्रित करके
उनको ‘ऊपर’ तक पहुंचाते हैं, जिनका
खूंटे पर लाकर भैंस बांधने में सबसे बड़ा हाथ होता है।
दुहने वालों के पास दो तरह के बर्तन होते हैं जैसे हाथी के दांत खाने के और
तथा दिखाने के और। एक बर्तन में पहले से पानी डाला होता है। दूसरा बर्तन शुद्ध दूध
दुहने के लिए।पानी वाला बर्तन आयोजन का होता है, दूसरा बर्तन अपने लिए। यहां अक्सर
ये लोग उस सिद्धांत को भूल जाते है कि जहां दो बर्तन होंगे वो तो खड़केंगे ही! जहां बड़े ग्वाले अपने
बर्तन में मलाईदार गाढ़ा दूध इकठ्ठा करने में लगे रहते हैं वहीं उनके चम्मचे
वमच्चे वगैरा आयोजन वाले बर्तन में चारों और छेद करके अपनी औकात के अनुसार अपना-अपना
हिस्सा इकठ्ठा करने लग जाते हैं। किसी तरह खेलों का आयोजन कर दिया जाता है। छेदों
पर एम सील या बहाने बाजी का फेवीकोल चिपका कर पानी मिला दूध मेहमान खिलाड़ियों को
परोस दिया जाता है, जिसे वे कोसते हुए पीकर चले जाते हैं। शिकायते दर्ज कर जाते
हैं। मीडिया हल्ला करती है यो फिर सीबीआई वाले इस बर्तन में उतरते हैं। छेदों पर
एस सील और फेवीकोल लगा देखकर हैरान हो जाते है। एकाध छेदों से एम सील हटाकर बाहर
झांकते हैं तो एकाध चम्मचा अभी भी छेद से चिपका मिल जाता है। इस आस में वो बैठा
होता है कि शायद अभी और माल आएगा।
बस! यहीं चिपकू चम्मचा ऊपर से नीचे तक सब को मरवा जाता है। सीबीआई
वाले तो मुंह खुलवाना जानते हैं। तशरीफ पर दो फटके पड़ते ही मुंह तो क्या तशरीफ भी
खुल जाती है। उसके बाद की तो पिक्चर अभी बाकी है दोस्त।
सारे के सारे छुटभइये और बिगबॉस पश्चिमी दिल्ली के आति विशिष्ट तिहाड़
कॉम्पलैक्स में लाए जाते हैं, जहां ओहदेदारी और भेदभाव खत्म। सब एक ही लाइन में
लगे होते हैं। इसे ही कहते हैं कुर्सी का खेल, जो आखिर में लाकर सबको एक साथ जेल
की चटाई पर बिठा देता है जहां ये लोग एक दूसरे के फटकों को सहलाते रहते हैं और
बाहर निकलने के जुगाड़ बिठाते रहते हैं।
तो आइए अगर आप भी कुर्सी के खेल में रूचि रखते हैं तो किसी बड़े आका के चरणों
में लोट जाइए। कर्सी मिल जाएगी। उसके बाद तो आप को किसी एक अदद खूंटे की जुगाड़
करना है। फिर तो आकंठ मलाई, दार दूध में ही नहाते नजर आएंगे। अगर आप का मूड हो तो
मेरा मोबाइल नंबर नोट कर 9818........।
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