सुनहरे शब्दों से कालिख तक कि यात्रा- लांस आर्मस्ट्रांग
सुरेश कुमार लौ
आज के समय में खेल
के द्वारा भौतिक उपलब्धियां पाना खिलाड़ी का मूलभूत उद्देश्य बन गया है। आधुनिक
ओलंपिक के जनक पियरे दे कुबर्तिन ने खेल के जिन उद्देश्यों को लेकर ओलंपिक की
संपकल्पना गढ़ी थी, उन उद्देश्यों में आज काफी परिवर्तन आ गया। आज के
प्रतिस्पर्धात्मक समय में खेल का उद्देश्य प्रतिभागिता नहीं रह गया है। बल्कि ‘हर कीमत पर जीत’ हो गया
है। इसका मूल कारण है विजेता को मिलनेवाली अपार राशि, सम्मान और यश। इसलिए
प्रत्येक खिलाड़ी जीत हासिल करना चाहता है। इसी के कारण कुछ अपनी क्षमताओं को
बढ़ाने के लिए उन साधनों का प्रयोग करते हैं जो खेल की मूलभूत भावना के मद्देनजर
प्रतिबंधित है।
द्वतीय विश्वयुद्ध
के दौरान सैनिकों की ठंड और कमजोरी से बचने और युद्ध के लिए तैयार विशेष प्रकार का
राशन दिया जाता था। इसी प्रकार वियतनाम युद्ध के दौरान अमरीकी सेना द्वारा विशेष
प्रकार का भोजन लिया जाता था। खेलों में आते निरंतर पैसे के कारण लगभग सभी खेलों
में मादक द्रव्यों के सेवन की प्रवृति बढ़ी है। यह प्रवृति
राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं बल्कि स्कूल और विश्वविद्यालय स्तर पर भी
बढ़ रही है।
1992 में विश्व
स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने मादक द्रव्यों के सेवन का संकट झेल रहे देशों की
मदद के लिए वैश्विक अभियान प्रारंभ किया। अस्सी के दशक एवं नब्बे के प्रारंभिक
वर्षों में अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति के तत्कालीन अध्यक्ष जुआन एंटोनियों सभामंच
ओलंपिक खेलों के समापन पर श्रेष्ठ आयोजन के लिए बधाई तथा डोपिंग के विरुद्ध संघर्ष
करने की गत रस्सी तौर पर कहते नजर आते हैं। 1960 के रोम ओलंपिक में साइक्लिटिस्ट
नूड जनसन की मृत्यु के बाद अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने चिकित्सीय आयोग गठित किया।
1967 में ब्रिटिश साइक्लिटिस्ट टॉम सिल्पसन की मृत्यु के बाद योरोपीय परिषद ने
एंटी डोपिंग नीति बनाई। 1988 का बहुचर्चित बेन जानसन को मादक द्रव्यों के सेवन का दोषी पाया गया। 1999 में वाडा
(वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी) का गठन किया गया। 2000 सिडनी ओलंपिक से मादक द्रव्य
निषेध नियम का अत्यंत कड़ाई से पालन होने लगा। बीजिंग ओलंपिक 2008 में 900 रक्त
नमूने लिए गए थे जिसमें से 6 नमूने रक्तवर्धक द्रव्य सेरा (सीईआरए) से युक्त पाए
गए थे।
सर्वाधिक प्रतिष्ठित
एवं चर्चित साइक्लिस्टि लांस आर्मस्ट्रांग पिछले कुछ वर्षों से लगातार मीडिया की
सुर्खियों में छाए रहे हैं। पहले लाइलाज बीमारी कैंसर से ग्रसित होने के कारण फिर
उस बीमारी से मुकाबला करके खेलों में अपनी वापसी कर पूरे खेल जगत में मिसाल कायम
कर समाचार पत्र के पन्नों पर जगह बनाई। अपनी आत्मकथा के द्वारा दूसरे कैंसर
रोगियों की निराशा को आशा की किरण में बदली भारतीय बल्लेबाज युवराज सिंह ने भी लांस
आर्मस्ट्रांग की आत्मकथा पढ़कर कैंसर से मुकाबला किया और सक्रिय खेल में वापसी की।
पर कहा जाता है न ‘सब दिन होत न एक समान’। आर्मस्ट्रांग एक बार फिर चर्चा में आए, लेकिन इस बार
कुछ गलत कारणों से। पिछले कुछ समय में आर्मस्ट्रांग पर डोपिंग के आरोप तेजी से
लगने लगे जिसे आर्मस्ट्रांग ने 17 जनवरी 2013 को प्रसारित ओपरा विनफ्रे के चर्चित
टीवी टॉक शो में स्वीकार कर लिया। लांस आर्मस्ट्रांग टोपिंग के मसले से जुड़ने
वाले पहले साइक्लिस्ट नहीं है। साइक्लिंग में खिलाड़ियों के उत्कृष्ट प्रदर्शन पर
लंबे समय से संदेह के घेरे में रहे हैं। वर्ष 1966 से 2010 तक के 45 पदकों में से
36 पदकधारी डोपिंग के दोषी पाए गए या फिर संदेह के घेरे में रहे।
लांस आर्मस्ट्रांग से एक लाख 25 हजार डॉलर दान के रूप में स्वीकार करने पर
अंतरराष्ट्रीय साइक्लिंग संघ की विश्वसनीयता पर भी प्रश्न चिंह लग गया। साथ ही डोप
टेस्ट एजेंसियों की ईमानदारी पर भी संदेह उठे हैं। कैंसर से उबरने के बाद एल्प्स पर्वत
पर विजय प्राप्त करने वाले लांस आर्मस्ट्रांग की अनुमानित कमाई 125 मिलियन डॉलर
आंकी जाती है।
हाल ही में एक कंपनी द्वारा आर्मस्ट्रांग पर केस दायर किया गया है। उस
कंपनी ने सात में से तीन टूर डी फ्रांस खिताब के लिए आर्मस्ट्रांग को बारह मिलियन
पाउंड दिए थे। अब जबकि आर्मस्ट्रांग के पदक छीन लिए गए हैं तो उस कंपनी ने इसे
स्वंय के साथ धोखा बताया है।
लांस की स्वीकारोक्ति के बाद अंतरराष्ट्रीय साइक्लिंग संघ ने न केवल उनसे
सातों पदक वापिस ले लिए बल्कि साइक्लिंग के इतिहास के पन्नों से भी इनका नाम हटा
दिया। आर्मस्ट्रांग के जीवन संघर्ष से प्रेरणा पानेवाले तमाम लोग अपने को छला से
अनुभव कर रहे हैं। सच है लांस आर्मस्ट्रांग इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों
से दर्ज हुए थे किन्तु डोपिंग ने उनके नाम पर अब काफी स्याही फेर दी है।
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