ये आईपीएल है मेरे दोस्त
कुलविंदर सिंह कंग
इस देश के तथाकथित
राष्ट्रीय धर्म क्रिकेट के पांचवे धाम आईपीएल ने देशवासियों को एक सूत्र में पिरो
दिया है। पिरो क्या दिया, पिरो कर इसमें इतना भिगो दिया है कि हम लोग अब और किसी
काम के बचे ही नहीं। कभी रात को दो पैग ज्यादा हो जायें तो सुबह हैंगओवर के
कारण माथा दुखता है लेकिन यहां रोज़ रात को क्रिकेट के पैग लगाने के बाद भी सुबह
पूरा देश फ्रैश दिखता है। क्योंकि ये आईपीएल है मेरे दोस्त। पिछले छह सालों से
चलने वाले इस मसाला क्रिकेट मेले ने देश में रवानगी और ताज़गी भर दी है।
आम भारतीय इसमें लगने वाले चौके-छक्के और ठुमकों को देखकर पानी, बिजली,
गंदगी, ट्रैफिक, श्रृद्धा चर फंड जैसी छोटी मोटी समस्याओं को भूल जाता है। ऐसी
जादू की छड़ी तो आज तक सरकार भी नहीं बना पाई है कि जिसे मात्र छिहत्तर मैचों में
घुमाने से ही साल भर के दुख दूर हो जायें। हम लोग तो क्रिकेट में इतना रमें हैं कि
थोड़े दिनों बाद देखना दामिनी-गुड़िया केस और सरबजीत की शहादत तक को भूल जाएंगे।
क्रिकेट और क्रिकेट में भी आईपीएल एक सुनामी का नीम है। आज तक किसी एक मेले
में वो बहार नहीं दिखी, जो इसमें है। इसमें ठुमके-शुमके हैं, लटके-झटके, टोटके-फटके
और डॉलर-शॉलर है। खूबसूरत हुस्न की बहार है और पैसे की भरमार है। ये अनवरत चलते
रहना चाहिए। रहती दुनियाँ तक चले क्योंकि ये अजर अमर है। शरीर नश्वर होता है
आईपीएल नहीं। इस पर किसी भी समय, काल और घटनाक्रम का असर नहीं होगा। इसका भविष्य
उज्जवल और निखरा हुआ होगा क्योंकि इसमें क्रीम-पाउडर और साबुन-डिटर्जेंट के
विज्ञापन होते हैं जो मैल में छिपे किटाणुओं को धो डालते हैं। जैसे-जैसे आईपीएल
निखरता जाएगा वैसे-वैसे देश की छवि भी निखरेगी।
करोड़ों रुपए खर्च करके हैल्थ मिनिस्ट्री आज तक लोगों की हैल्थ इंप्रूव
नहीं कर पायी। लेकिन ये भी आईपीएल ने कर दिखाया। क्रिस गेल और विराट कोहली के
एक-एक छक्के पर जब दर्शक स्टेडियम में उछल कूद कर जम्पिंग झपाक भांगडा करते हैं तो
सोचिए एक साथ कितने लोगों का व्यायाम मुफ्त में ही हो जाता है। लोगों की सेहत
सुधारने का गैर सरकारी प्लान आईपीएल। इसी की वजह से लोगों के भेदभाव दूर हो रहे
हैं। छोटा-बड़ा, स्त्री-पुरुष, लड़का-लड़की, हिन्दू-मुस्लमान-सिख-ईसाई सब एक साथ
उछलते कूदते हैं तो राष्ट्रीय एकता और साम्प्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा मिलता है। एक
जोरदार छक्का लगते ही स्टडियम में बैठे युवा लड़के-लड़कियाँ मारे खुशी के आपस में
गले लिपट जाते हैं जो स्त्री-पुरुष के भेदभाव को खत्म करके दूरियों को पाटता है।
नजदीकियां बढ़ाता है। अगर एक ओवर में ही छह छक्के लग जाए तो पता नहीं बात कहाँ तक
पहुंच जाए। जिस भेदभाव को सरकारी विज्ञापन भी नहीं मिटा सके उसे क्रिस गेल का एक
छक्का ही मिटा देता है। उछल-कूद और भांगड़े के बाद लोगों का गला भी सूखेगा तो
लिजिए पेप्सी और कोक की बोतल हाजिर है। देखा ये विदेशी खिलाड़ी और विदेशी ब्रांड
इस देश का कितना भला कर रहे हैं ये आईपीएल है मेरे दोस्त।
माना कि इस बढ़ती हुई ग्रमी में पीने को भी पानी नहीं है और क्रिकेट की
पिचें रोज़ाना पचास हजार लीटर पानी के फव्वारे से स्नान करती हैं। ये तो जरूरी है
मेरे भाई। पब्लिक अगर दो महीने स्नान नहीं कर पायेगी तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
वैसे हरेक छक्के के बाद जब इतना भांगड़ा होगा तो फिर दोबारा पसीना भी आएगा ही। फिर
रोज नहाने से क्या फायदा? दो महीने बाद इकठ्ठे ही
नहा लेना। साबुन शैंपू के विज्ञापनों में ये तो कहीं नहीं कहा जाता कि इनका तुरंत
प्रयोग करें नहीं तो पिघल जाएगा। ठोस साबुन है दो महीने बाद भी नहीओगे तो इतना ही
असर करेगा।
ऐसे अवसर बार-बार नहीं
मिलते क्रिकेट के महा मानव क्रिस गेल के आसमानी छक्कों का आनंद लीजिए। जा आपको
पुच्छल तारे का आभास देंगे। आईपीएल की वजह से माना कि थोड़ी सी आपको बिजली पानी की
कमी महसूस होगी लेकिन तो भी इसमें इतना मुँह लटकाने वाली तो कोई बात नहीं है। अरे
इतने उदास तो वो गेंदबाज, जिनकी गेंदों पर चौके-छक्के पड़े या ठुमके मारने वाली
चियर गर्ल्स नहीं हुई होंगी, जिनको क्रिस गेल ने इतना नचाया।
देखों, ज्यादा उल्टे सीधे मुँह बनाओगे तो आईपीएल किसी दूसरे देश में शिफ्ट
करवा देंगे। फिर रोना माथा पकड़कर। सन 2009 में ललित मोदी इसे दक्षिण अफ्रीका ले
गए थे। आज तक ले जाने का भी पता नहीं चला कि कहाँ खुद चले गए। हमने यूं ही कहां
आईपीएल को यूगाँडा, सोमालिया या फिजी में शिप्ट कर दिया तो फिर लाख मिन्नते
निकालना वापिस नहीं लौटेगा। क्योंकि ये आईपीएल है मेरे दोस्त, कोई मजाक नहीं है।
जम्पिंग झपाक, क्या समझे, नहीं समझे?
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