खेल मीडिया और महिला छवि
स्मिता मिश्र
खेल की लोकप्रियता
में खेल मीडिया का योगदान अद्भुत होता है। वह ही खेल को स्थानीय को राष्ट्रीय और
फिर अंतरराष्ट्रीय बनाता है। खेल मीडिया में भी सर्वाधिक प्रभावशाली माध्यम है
टीवी। टीवी की पहुंच एवं प्रभाव सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। इसलिए किसी भी महत्वपूर्ण
अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता के टीवी प्रसारण अधिकार बहुत महंगे होते हैं और जो
भी टीवी चैनल यह प्रसारण अधिकार खरीदता है वह उस निवेशित पूंजी को लाभ में बदलने
का हर संभव प्रयास करता है।
आईपीएल की बात की
जाए तो वह खेल कार्यक्रम निर्माण में ए आइडिया से लेकर प्रसारण तक उच्च तकनीक का
प्रयोग करने में कोई कसर नहीं छोड़ता है। चैनल उस खेल प्रसारण के प्रचार को इतना
आकर्षक बनाता है ताकि ज्यादा से ज्यादा विज्ञापन दाताओं को वह लुभा सके। इसमें
मल्टी मीडिया कैमरा सैटअप प्रसारण तकनीक, उच्च ग्राफिक्स, श्रेष्ठ कमेंटेटर की
व्यवस्था तो होती ही है साथ ही सर्वाधिक प्राथमिकता होती है प्रभावशाली एंकरों की,
पुरुष एवं महिला एंकरों की। लेकिन दोनों ही एंकरों से अपेक्षाएं भिन्न-भिन्न होती
हैं। पुरुष एंकर को क्रिकेट का भरपूर ज्ञान होना चाहिए, रोचक शैली, बेहतर
संप्रेषण, खेल विश्लेषक होना चाहिए। लेकिन महिला एंकर के लिए बस कम कपड़े और
ग्लैमरस दिखना ही सबसे बड़ी योग्यता होती है। उसे क्रिकेट पर्सनल का ज्ञान हो न हो
पर क्रिकेटर का ज्ञान अवश्य होना चाहिए। पुरुष एंकरों, बुढ़ाए पूर्व क्रिकेटरों को
अपनी अदा से लुभाना आना चाहिए। टीवी को दूर-दूर से देखने वाले दर्शक को अपनी अदाओं
से ऐसा लुभाना चाहिए कि वे टीवी रिमोट को एक तरफ रखकर बस सोनी सिक्स पर ही फिक्स
हो जाए।
यही नहीं पुरुष और
महिला एंकरों की लांजिविटी में भी अंतर है। आईपीएल में ही दोनों पुरुष एंकर पिछले
कई संस्करणों से है किन्तु महिला एंकर प्रत्येक संस्करण में बदल जाती है। क्योंकि
दैहिक सौंदर्य तो क्षणिक होती है। एक साल में नई सुंदरियों की कतार खड़ी हो जाती
है। एंकर बनने की अर्जी हाथ में लिए हुए। पुरुष एंकर के पास ज्ञान की ऐसी पूंजी है
जो बढ़ती जाती है और महिला एंकर अपनी दैहिक पूंजी की भुनाती हो जो कि उम्र के साथ
घटती जाती है।
स्त्री संघर्ष की
पूरी लड़ाई मात्र देह माने जाने के विरुद्ध हुई थी। एक लंबी लड़ाई के बाद स्त्री
घर से बाहर निकली ज्ञान-विज्ञान, खेल के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया,
संवैधानिक अधिकार प्राप्त किए। किन्तु इधर बाजार का दबाव पुनः उन्हें उसी देह की
ओर लौटने पर विवश कर रहा है। ऐसे में हम स्त्रियों का दायित्व और गहन हो जाता है
कि हम किस प्रकार इन साजिशों को निष्फल करें और अपनी अस्मिता की रक्षा करें।
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