सर्कस में बदलता क्रिकेट यानी दिल जंपिग जंपिग जपाक
स्मिता मिश्र
लगभग एक महीना पहले
से टेलीविजन पर एक विज्ञापन आना शुरू हुआ जिसमें कोरियोग्राफर बैंड बाजे की धुन पर
घर हो या दफ्तर लोगों को खास तरीके से नाचना सिखा रही है। एक बारगी तो यह लगा कि
शायद यह फराह के किसी आगामी डांस रियल्टी शो का प्रोमों है लेकिन विज्ञापन के अंत
में यह स्पष्ट हो जाता है कि यह डांस रियल्टी शो नहीं बल्कि इस देश के उस सबसे
बड़े सर्कस का प्रोमों है जो आज भारतीय खेल की सबसे बड़ी रियल्टी बन गया है यानी
इंडियन प्रिमियम लीग।
‘प्ले हार्ड प्ले फेयर’ की शपथ लेकर खेलने वाली
नौ टीमे 54 दिनों तक 13 शहरों में 76 मैचों में जंपिग जंपिग जपाक करेंगी। इसका
अंदाज तो अद्घाटन समारोह में ही हो गया था जहां मनोरंजन, रोमांच, कलाबाजी सभी कुछ
तो था। रवींद्र संगीत, रैप संगीत और बालीवुड संगीत के काकटेल में आसमान में करतब
दिखाते तबलावादक, हवा में उड़ती ट्रॉफी आतिशबाजी से अभिभूत दर्शकों के लिए खेल के
अतिरिक्त सभी कुछ था।
आज बहुत से लोग की रोजी-रोटी का साधन बन गया है। आईपीएल। इसमें जबरिया
रिटायर हुए क्रिकेटरों से लेकर उदीपान क्रिकेटर, आउटडेटिड हिरो, हिरोइन से लेकर
गुमनाम से उद्योगपतियों तक के लिए यह प्लेटफार्म का काम कर रहा है। रियल इस्टेट
मालिक से लेकर सड़क के मजदूर तक सभी को आईपीएल कुछ न कुछ दे रहा है। पर बाजार का
अर्थशास्त्र है प्रत्येक साभ की कीमत होती है। फ्रेंचाइजी क्रिकेट के इस कारोबार
में पैसे का दबाव इतना होता है कि हर हाल में जीत महत्वपूर्ण हो जाती है। ऐसै में
प्ले हार्ड प्ले फेयर की शपथ उद्घाटन समारोह के साथ ही भुला दी जाती है और किसी भी
कीमत पर मुनाफा कमाने की मानसिकता के साथ मैदान पर उतरने वाली इन कॉरपोरेट
कंपनियों में गला काट प्रतिस्पर्धा है। मैदान के भीतर और बाहर के विवाद इसी का
प्रतिफलन है। अपने पहले संस्करण से ही विवादस्पद रहने वाले इस टूर्नामेंट के छठे
संस्करण तक आते-आते नए विवादों को जन्म दिया है। इस समय सूखे की मार झेल रहे
महाराष्ट्र में कुल 16 मैच होने है जिनकी पिचों के रखरखाव पर 21.6 लाख लीटर पानी
की जरूरत है। खेत-खलिहानों का पानी खींचकर पिचों के लिए प्रयोग करना एक भारी कीमत
है जोकि महाराष्ट्र की जनता चुका रही है।
यही नहीं इसके अतिरिक्त भी अन्य मुद्दे है जो कि खेल के वास्तविक स्वरूप को
आहत कर रहे हैं। जैसे कई दिग्गज खिलाड़ी चोटों के कारण राष्ट्रीय क्रिकेट से तो
दूर रहते हैं लेकिन आईपीएल आते ही ठीक हो जाते हैं। देर रात की होनी वाली
पार्टियों में नशे का सेवन अनेक युवा खिलाड़ियों को लुभाता है। यह सच है कि बदलते
समय में जीवन शैली में बदलाव आता है और खेल भी बदलता है। लेकिन बदलाव इतना भी न हो
कि उसकी मूल भावना ही समाप्त हो जाए।
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