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फौजा सिंह, तुझे सलाम



कुलविंदर सिंह कंग
 

इस एक अप्रैल को मैराथन रनर फौजा सिंह 102 साल के हो गए। इससे पहले उन्होंने रिटायरमेंट लेते हुए अपने शूज किल्ली पर टांग दिए, संदेश देते हुए कि जीवन चलने का नाम चलते रहे सुबहो-शाम।

काश! देश के खेल संघों पर वर्षों से कब्जा जमाए बैठे हमारे बुढ़ऊ नेतागण इससे कोई सीख ले पाएं। ये लोग खुद ही ढंग से दो कदम आगे नहीं बढ़ा पाते हैं तो खेलों को क्या आगे ले जाएंगे? फाइलों में कागजी ट्रैक बनाने वाले इस नेताओं के घुटनों की ग्रीस भी खत्म हो चुकी लेकिन फिर भी ग्रीस यानि एंथेस तक यात्रा करने का लालसा अभी खत्म नहीं हुई है। बाबा फौजा सिंह से इन्हें सीख लेनी चाहिए कि जो चीज चलती रहेगी, उसी की शमा जलती रहेगी। एक पंजाबी कहावत है- आदमी चलदा फिरदा लोहया, बैठ गया ताँ गोहआ, लेट गया ताँ मोआ।

काश! हमारे खेल संघों के बड़े आकाओं की आफिस टेबल कांच की बनी होती तो अंदर की सारी बात बाहर आ जाती कि सूजे घुटने और मुड़ी हुई टांगों वाले जो खुद का भार भी ढ़ंग से नहीं उठा पाते ये खेलों का भार क्या खाक उठाएंगे? खेल संघों पर खुद एक भार खेलों के ये कर्णधार पता नहीं किसके आभार से अपना व्यापार और खेलों के साथ अनाचार कर रहे हैं। इनमें से कई लोग तो जेल के अंदर भी बिस्कुट बनाना सीख रहे हैं क्यों कि जब इन खेलों की ऊंची कुर्सी पर बैठे थे। तब भी तो अपने लिए सिर्फ सोने के बिस्कुट ही तो बनाए थे।

हे इस देश के खेल कर्णधारों अपने आपको कुर्सियों से नीचे उतारों। फौजा सिंह से सीख लो। लगन और ईमानदारी की भीख लो, फौजा सिंह की राह पर चलो, दौड़ों साथ ही कुर्सी छोड़ों।

इस देश की तरह दुनियां के हर एक कोने में कई तरह के धरती-धकेल बैठे हैं। गिनीज बुक वालों ने फौजा सिंह का रिकॉर्ड दर्ज करने से इसलिए मना कर दिया कि इनका जन्म प्रमाण पत्र उपलब्ध नहीं है। अरे, नामुरादों! जन्म प्रमाण पत्र नहीं है तो क्या हुआ, जन्म तो हुआ था तभी तो वो आज तक दौड़ रहा था। माना कि उम्र में साल दो साल का फर्क हो सकता है लेकिन है कोई दुनिया का बंदा जो अस्सी की उम्र के बाद ढंग से चल पाया हो दौड़ने की तो बात ही अलग है। पासपोर्ट पर लिखी जन्म तिथि को ही मान लो जिस पासपोर्ट से फौजा सिंह न जाने कितने ही पासपोर्ट घूम आए हैं। ओये! की फर्क पैंदा ए गिनीज बुक को छोड़ों फौजा सिंह का रिकॉर्ड करोड़ों भारतीय खेल प्रेमियों के दिलों में दर्ज है। फौजा सिंह को भले ही अंग्रेजी न आती हो। लेकिन वे मां बोली पंजाबी और अपने वतन पंजाब की मिट्टी को प्यार करते हैं। 

हमारे देश के नेताओं ने फौजा सिंह की दौड़ते रहने की कला को कॉपी तो किया है लेकिन दूसरे अंदाज में दौड़ते ये भी है, लेकिन सिर्फ और सिर्फ कुर्सी के पीछे। बिना किसी मकसद के कुर्सी के चारों ओर गोल-गोल ही घूमते रहते हैं। फौजा सिंह की तरफ से हम पंजाब की युवा पीढ़ी को अपील करते हैं जिनके घुटने-गोड़ों में अभी से ही सीलन आ गई है। नशे को छोड़ों उठो और दौड़ों। शुद्ध शाकाहारी और नशे पत्ते से दूर रहनेवाला, मेडिकल साँईंस और बीमारियों को मुंह चिढ़ाने वाला हिम्मत से लबरेज फौजा सिंह अकेला नहीं बल्कि पूरी फौज है। एक संस्था का नाम, फौजा सिंह। पंजाब का गर्व, देश का नाज, पूरी दुनियां का सरताज फौजा सिंह अब रिटायर्ड हो गया है। उनके जन्म दिन पर हम सभी उन्हें बधाई देते हैं।

हर एक चीज का एक समय होता है इसलिए फौजा सिंह जी अब आप करे आराम ताकि ये देश आपको करे सलाम। आनेवाला युग भी आपको सलाम करेगा। बाबा बोहड़ तुहानू सलाम करदे होये असीं माण महसूस करदे हां।

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