अरुणिमा के अदम्य साहस से झुका एवरेस्ट
एकता खनगवाल
अगर मन में लगन और
उत्साह हो तो व्यक्ति कुछ भी कर सकता है। यह कहना है अरुणिमा सिंहा का। वालीबॉल की
भूतपूर्व राष्ट्रीय खिलाड़ी रही अरुणिमा सिंहा ने लगभग दो वर्ष पूर्व एक ट्रेन
हादसे में अपना एक पैर खो दिया था। एक खिलाड़ी के लिए उसका खेल जीवन ही समाप्त
नहीं हुआ बल्कि जीवन जीने का भी कारण नहीं बचा। लेकिन अरुणिमा ने अपना साहस बटोरा
और चिकित्सा से प्रोस्थेटिक कृत्रिम पैर लगवाया। अरुणिमा बिस्तर से उठ खड़ी हुई।
लंगड़ाते-लंगड़ाते पैरों से अदम्य साहस दिखाते हुए अरुणिमा 21 मई 2013 को 10:55 को दुनिया की सबसे
ऊंची पहाड़ की चोटी माउंट एवरेस्ट पर अपने पैरों के निशान छोड़ आई।
वे भारत की प्रथम व्यक्ति बनी जिन्होंने कृत्रिम पैरों के साथ माउंट
एवरेस्ट की सफलतापूर्वक चढ़ाई की। टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन की निदेशक
बछेन्द्री पाल के कुशल प्रशिक्षण में अरुणिमा ने 3 मार्च 2012 से अभ्यास शुरू किया
जो लगभग एक वर्ष तक चला। अरुणिमा ने काठमांडू से एवरेस्ट की चोटी तक की यात्रा 52
दिनों में पूरी की। इस यात्रा के दौरान उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
अरुणिमा ने बताया कि कृत्रिम पैर के कारण बर्फ में लगातार चलने पर कई बार घाव हो
जाता, इस कारण अरुणिमा को बार-बार पैर खोलकर घाव की स्थिति देखना पड़ती। इसके कारण
मुझे कमजोरी सी लगती। इससे मेरी रफ्तार भी धीमी हो जाती। इसलिए बाद में मैंने उस
चोट के बारे में सोचना ही छोड़ दिया। अरुणिमा ने अपने दृढ़ संकल्प से अपनी शारीरिक
कमजोरी को सीमा न बनाते हुए अपनी ताकत बनाया और देश के समाने मिसाल कियम की।
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