खेल केवल पदक नहीं देश को स्वस्थ नागरिक भी देता है- ब्रजभूषण शरण सिंह
ब्रजभूषण शरण सिंह एक राजनेता होने के साथ-साथ भारतीय
कुश्ती संघ के अध्यक्ष भी है। खेल और खिलाड़ियों
के विषय के एक अलग नजरिया रखते हैं। उनका मानना है कि खिलाड़ी देश को पदक ही नहीं
स्वस्थ नागरिक भी देता है। स्पोर्ट्स क्रीड़ा की संपादिका स्मिता मिश्र ने
महिला खिलाड़ियों के विषय में कुश्ती संघ अध्यक्ष ब्रजभूषण शरण सिंह से
साक्षात्कार लिया। प्रस्तुत है साक्षात्कार के कुछ अंश-
महिला खिलाड़ियों के समक्ष आप किस प्रकार की चुनौतियां
देखते है ?
शुरू से कुश्ती जैसे ताकत वाले खेल पर तो वर्चस्व पुरुष
वर्ग का रहा है। पिछले कुछ समय में हमारी स्टार महिला खिलाड़ियों के कारण लोगों की
सोच बदली है। लेकिन अभी भी पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की भागीदारी कम है। हैं।
खिलाड़ियों के लिए आगे चलकर रोजगार सुनिश्चित होना चाहिए।सरकार की भूमिका भी इसमें
काफी अहम है। जैसे हरियाणा की सरकार खिलाड़ियों को सरकारी पद दे रही है इससे
खिलाड़ियों के सामने आगे चलकर रोजी-रोटी की समस्या नहीं होती। लेकिन अफसोस की बात
है कि दूसरी सरकारे इस तरह के कदम नहीं उठा रही है।
कुश्ती हमारा पारंपरिक खेल है जिसमें ग्रामीण खिलाडियों की बहुलता होती है । ग्रामीण माहौल में एक लड़की
सामाजिक प्रतिरोध सहन कर खेल के मैदान में उतरती है ।
तो क्या सरकार कुछ ऐसा कर सकती है कि जो गांव महिला खिलाड़ियों को प्रोत्साहित
करते हैं उन्हें सम्मानित किया जाए जिससे दूसरे गांव भी इससे सीख ले सके?
यह बात बिल्कुल सही है कि जब लड़की घर से बाहर निकलती है तो
उसे तमाम कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। एक महिला खिलाड़ी सारे सामाजिक
ताने-बाने को तोड़कर खेल के मैदान में उतर रही है अगर उसको अपने परिवार का समर्थन
हासिल नहीं है तो उसे खेल के मैदान में आगे बढ़ने में काफी कठिनाइयों का सामना
करना पड़ेगा। इसमें सरकार के माध्यम से ही कोई काम हो सकता है। उदाहरण के रूप में
उत्तर प्रदेश के अंदर मेरठ स्टेडियम है, गोरखपुर
स्टेडियम है, कई साईं के केंद्र है जो केवल पुरुषों के लिए
हैं महिलाओं के लिए एक भी नहीं हैं। अब सवाल उठता है महिलाएं जाए कहां? उत्तर प्रदेश से अलका तोमर निकली, लेकिन शुरू में
उन्हें लड़कों के साथ अभ्यास करना पड़ा। अब सोचने वाली बात है कि एक लड़की को
लड़कों के साथ अभ्यास करने के लिए अपने आप को मानसिक रूप से कितना तैयार करना पड़ा
होगा।
कुश्ती संघ के अध्यक्ष होने के नाते महिला खेलों को
लेकर आपकी क्या प्राथमिकताएं हैं?
इस समय हमारी नजर ओलंपिक 2016 पर है। कुश्ती की बात करें तो
लन्दन ओलंपिक में गीता फोगट ने महिला कुश्ती के लिए क्वालिफाई किया था।
हमारी प्राथमिकता है कि आनेवाले ओलंपिक में महिलाओं के ज्यादा से ज्यादा पदक आएं।
कॉरपोरेट के साथ मिलकर हम इनको ट्रेनिंग के लिए भेज रहे हैं। इनके लिए कैंप लगाए
जा रहे हैं। पार्टनर की कमी को पूरा करने के लिए जूनियर और सीनियर खिलाड़ियों को
साथ खिलाया जा रहा है। इनको हर प्रकार की सुविधा उपलब्ध कराने की कोशिश की जा रही
हैं ।
पिछले कुछ समय में हमने देखा है खेलो में पीपीपी यानि
पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल काम कर रहा है। क्या कुश्ती में यह मॉडल
संभव है?
बिल्कुल संभव है और उसके लिए हम प्रयास भी कर रहे हैं।
लेकिन बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि सहारा को छोड़कर किसी भी कॉरपोरेट ने
कुश्ती को सपोर्ट नहीं किया है। हम लोग कुश्ती लीग के बारे में सोच रहे हैं लेकिन
जिस रफ्तार से कॉरपोरेट को जुड़ना चाहिए उस रफ्तार से वे नहीं जुड़ रहे हैं। कई
कॉरपोरेट घराने है जो सीधे साईं को पैसा दे आते हैं, साईं सरकार को
पैसा दे देती है और सरकार उसे अपने ढंग से खर्च करती है। जब तक कॉरपोरेट घराने आगे
नहीं आएंगे और हमारे पास पैसे नहीं होंगे तब तक हम सुविधा नहीं दे सकते। जो
खिलाड़ी कामयाब हैं उसके लिए कई लोग आगे आ रहे हैं लेकिन शुरुआती स्तर के
खिलाड़ियों के लिए कोई भी आगे नहीं आ रहा है। हमारे देश में बुनियादा ढ़ाचा बिना
काम के मुंह बाए बनकर खड़ा है। उनको खोला जा सकता है। लखनऊ के साईं सेंटर में
खेलने के लिए बच्चे नहीं है। उनके पदक नहीं आ रहे हैं। आज निजी केंद्रों के पदक आ
रहे हैं।
खिलाड़ियों का जीतना कितनी अहमियत रखता है?
हमें यह नहीं देखना चाहिए कि खिलाड़ी केवल पदक देता है
खिलाड़ी देश को स्वस्थ नागरिक देता है, स्वस्थ सिपाही
देता है। जो भी खिलाड़ी खेल के मैदान में जा रहा है वह चाहे लड़का हो या लड़की वह
न केवल देश को पदक दे रहा है बल्कि वह देश को एक स्वस्थ नागरिक दे रहा है। खेल को
केवल इस नजरिए नहीं देखना चाहिए वह हमें पदक देंगे। आज हमारे देश में स्वास्थ्य की
स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं है। मेरे हिसाब से तो बूढ़े और बीमार व्यक्ति को छोड़कर
देश के सभी नागरिकों के लिए कोई न कोई खेल खेलना अनिवार्य होना चाहिए। जहां तक
महिला खिलाड़ियों की बात है आज जो भी महिला खिलाड़ी आगे आईं है उसमें सरकार को
योगदान नहीं है। इसके पीछे हाथ है उनके माता-पिता का और उनके गुरू का।
|
|
No comments: