जेल के अँधेरे से दी दुनिया को रोशनी
स्मिता मिश्र
दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला नहीं रहे। दक्षिण अफ्रीका की भूमि से बीसवीं सदी के दो महानायक विश्व को दिए - महात्मा गांधी और नेल्सन मंडेला। एक की कर्मभूमि दक्षिण अफ्रीका रही तो दूसरे की जन्मभूमि । गांधी ने दक्षिण अफ्रीका की यात्रा जहां समाप्त की, उसी के अगले वर्ष मंडेला का जन्म हुआ। इस तरह गांधीवादी अहिंसा का सातत्य दक्षिण अफ्रीकी भूमि पर बना रहा। साम्राज्यवादी नस्लीय भेदभाव का विरोध इन दोनों महान नेताओं ने शांति से किया। गांधी को दक्षिण अफ्रीका में चलती ट्रेन से फेंके जाने से नस्लीय भेदभाव के अपमान का अनुभव हुआ और मंडेला का तो जन्म ही नस्ली भेदभाव की भूमि पर हुआ।
दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला नहीं रहे। दक्षिण अफ्रीका की भूमि से बीसवीं सदी के दो महानायक विश्व को दिए - महात्मा गांधी और नेल्सन मंडेला। एक की कर्मभूमि दक्षिण अफ्रीका रही तो दूसरे की जन्मभूमि । गांधी ने दक्षिण अफ्रीका की यात्रा जहां समाप्त की, उसी के अगले वर्ष मंडेला का जन्म हुआ। इस तरह गांधीवादी अहिंसा का सातत्य दक्षिण अफ्रीकी भूमि पर बना रहा। साम्राज्यवादी नस्लीय भेदभाव का विरोध इन दोनों महान नेताओं ने शांति से किया। गांधी को दक्षिण अफ्रीका में चलती ट्रेन से फेंके जाने से नस्लीय भेदभाव के अपमान का अनुभव हुआ और मंडेला का तो जन्म ही नस्ली भेदभाव की भूमि पर हुआ।
सत्ताईस साल जेल के अंधेरे में बिताकर भी मंडेला में संघर्ष का जज्वा कम नहीं हुआ। 1990 में जब वे जेल से निकले तो दक्षिण अफ्रीका ही नहीं पूरे विश्व में समानता का ‘प्रकाश’ ले आए। 1994 में वे देश के प्रथम अश्वेत राष्ट्रपति बने। इस प्रकार अल्पसंख्यक श्वेतों का शासन समाप्त हुआ और एक बहुनस्ली लोकतंत्र की स्थापना हुई। दक्षिण अफ्रीका में रंगभेदी शासन के खिलाफ मंडेला की लड़ाई को भारत में अंग्रेजों के खिला फ गांधी की लड़ाई के समान समझा जाता है। इसी लिए भारत ने मंडेला को भारत का सर्वोच्च नागरिक
सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया।
यही नहीं दोनों ही नेताओं ने रंगभेद मिटाने के लिए खेल को माध्यम बनाया। गांधी ने ‘पेसिव रिसिस्टर’ नाम से डरबन, प्रिटोरिया और जोहानसबर्ग में तीन क्लब खोले । उसी तरह नेल्सन मंडेला ने भी लंबे संघर्ष के बाद दक्षिण अफ्रीका को खेल के विश्व मानचित्र पर स्थापित किया।चूँकि खेल तमाम भेदभाव से परे समानता के स्तर पर खेला जाता है, इसलिए रंगभेद की नीति के चलते दक्षिण अफ्रीका को खेल के विश्व मानचित्र से लगभग तीन दशकों तक बहिष्कृत रखा गया। 1964 से 1988 तक ग्रीष्मकालीन ओलंपिक से दक्षिण अफ्रीका अनुपस्थित रहा। यहां तक कि दक्षिण अफ्रीकी खिलाड़ी देश छोड़कर दूसरे देशों की नागरिकता लेकर खेलों में भाग लेने का प्रयास करते रहे। लेकिन वहां भी इन खिलाड़ियों को अपमान का दंश झेलना पड़ा। 1992 बार्सिलोना ओलंपिक से ओलंपिक आंदोलन का अंग बना।
इसी प्रकार आज टेस्ट क्रिकेट में नंबर एक
दक्षिण अफ्रीका 1991 तक
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से प्रतिबंधित रहा। यह भी सुखद संयोग ही कहा जा
सकता है कि गाँधी ही के देश भारत में दक्षिण अफ़्रीकी टीम ने
अपना निष्कासन के बाद प्रथम मैच खेला। दस नवंबर 1991 को भारत के ईडन गार्डन में प्रथम एकदिवसीय मैच
खेलकर कई दशकों के निर्वासन के
बाद वापसी की। आज दक्षिण
अफ्रीका क्रिकेट की महाशक्ति बन कर उभरा है जोकि इस समय विश्व विजेता ‘टीम इंडिया’ को मैदान में
धूल चटा रहा है।
1994 में राष्ट्रपति पद संभालने के
बाद मंडेला का
लगातार यह प्रयास रहा कि खेलों को आधिकारिक प्रोत्साहन मिले। गांधी की तरह
मंडेला भी यह जानते थे कि फुटबॉल के खेल में लोगों को अपनी ओर खींचने की
बड़ी ताकत है। इसलिए उनका लगातार प्रयास यह रहा कि फुटबॉल के बड़े आयोजन देश
में हो। इन्हीं प्रयासों के फलस्वरूप 15 मई 2004 को दक्षिण
अफ्रीका को 2010 के फीफा विश्व कप की मेजबानी दिये जाने की घोषणा की। पहली बार
अफ्रीकी महाद्वीप पर फुटबॉल विश्व कप खेला गया।
शांति के इस मसीहा ने आज विश्व को भले ही अलविदा कह दिया हो
लेकिन उनके द्वारा दिखाए गए प्रकाश का अफ्रीका ही नहीं बल्कि पूरा विश्व ऋणी
रहेगा।
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