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फुटबॉल विश्व कप अवसर के साथ चुनौती भी



स्मिता मिश्र
आखिरकार भारतीय फुटबॉल प्रेमियों को साल के अंत में एक अच्छी खबर मिल ही गई। भारत भले ही फीफा विश्व कप में भाग लेने से कोसों दूर है लेकिन 2017 के अंडर-17 जूनियर विश्व कप की मेजबानी हासिल करने में कामयाबी मिल गई। अजरबेजान, उजबेकिस्तान, आयरलैंड और दक्षिण अफ्रीका की दावेदारी को दरकिनार रखते हुए भारत को यह मेजबानी मिली। फीफा अध्यक्ष सैप ब्लेटर भले ही इस भौगोलिक राजनीतियानी जियो पालिटिक्सके तहत लिया जाने वाला निर्णय बता रहे हैं, पर यह भी सच है कि विश्व कॉरपोरेट निवेशकों को  भारत जैसा बाजार और कहीं नहीं मिलता।

इस प्रतियोगिता की मेजबानी करनेवाला भारत पांचवा एशियाई देश है। इससे पूर्व चीन (1985), जापान (1993), दक्षिण कोरिया (2007) और संयुक्त अरब अमीरात (2011) इस प्रतियोगिता के मेजबान रह चुके हैं। चूंकि भारत पहली बार फीफा की किसी प्रतियोगिता का मेजबान बनने जा रहा है इसलिए निश्चित
तौर पर भारत के लिए विश्व के सर्वाधिक लोकप्रिय खेल के अंतरराष्ट्रीय मानकों को स्थापित करना बहुत बड़ी चुनौती है। लेकिन यह भी उतना ही बड़ा सच है कि भारत के लिए यह सुनहरा अवसर है कि वह अपने देश में फुटबॉल की लोकप्रियता बढ़ा सके।

इस आयोजन के लिए आधारभूत ढाँचे की निर्मिति के लिए भारत सरकार जहां 125 करोड़ रुपए की स्वीकृति दे चुकी है, वहीं भारतीय कॉरपोरेट घरानों के लिए भी निवेश के लिए उपयुक्त मौका है। दिल्ली मुंबई, कोलकता, कोच्चि, गुवाहाटी, बेंगलुरू, पुणे और मारागोवा में से छ: शहरों का चुनाव मैच स्थल के रूप में करके उनको अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम के रूप में विकसित किया जाएगा। विश्व स्तरीय सुविधाओं की निर्मिति से भारत का स्वयं भी फुटबॉल का स्तर बढ़ेगा, साथ ही खेल के प्रति लोगों की रुचि बढ़ाने में भी यह आयोजन कारगर सिद्ध होगा।

बड़ी उपलब्धि अपने साथ बड़ी चुनौतियां भी लाती है। इस आयोजन में समय पर निर्माण पूरा कर देना एक भारी चुनौती रहेगा। दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों में निर्माण में हुई देरी से भारत की काफी भद्द पिटी थी। भारत में आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर केंद्रीय सरकार की निर्मिति भी इस आयोजन संबंधी निर्णयों को प्रभावित कर सकती है।इसके साथ ही स्टेडियम में खाली  दर्शक दीर्घा भी भारी समस्या है।यह स्वीकृत सत्य है कि भारत में केवल क्रिकेट मैच ही दर्शक दीर्घाओं को भरने का माद्दा रखते हैं। क्रिकेट को अतिरिक्त अन्य खेलों के मैचों का भारतीय दर्शक अमूमन टिकट लेकर नहीं देखता है। हाल ही में हुए हॉकी जूनियर विश्व कप इसका प्रमाण है। नई दिल्ली के मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में आयोजित इस विश्व कप प्रतियोगिता में रोजाना कुल जमा पांच सौ दर्शक भी नहीं होते थे। ऐसे में जिन मैचों में भारत या स्टार देश नहीं होंगे उनमें खाली स्टेडियम आयोजन की चमक को फीका न कर दें।

यहीं नहीं मेजबान होने के नाते भारत को बेहतर खेल भी दिखाना होगा। इसके लिए जूनियर कार्यक्रम अभी से ही विकसित करना होगा। आयु घोटाला भी भारतीय जूनियर प्रतियोगिताओं में आम बात है जिसमें निर्धारित आयु वर्ग में अधिक उम्र के खिलाड़ियों को शामिल कर लिया जाता है। जूनियर हॉकी विश्व कप में भी यह विवाद छाया रहा। अब समय आ गया है कि भारत एक ईमानदार शुरुआत करें ताकि अंतरराष्ट्रीय खेल शक्ति तो बने ही, एक स्वस्थ राष्ट्र की संकल्पना भी सार्थक हो सके।

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