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सड़क से संसद तक...


स्मिता मिश्र

विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र देश का लोकतंत्र पुन: परिभाषित हो रहा है। जनता का शासन जनता के लिए, जनता के द्वारा किया जाना ही लोकतांत्रिक राष्ट्र की मूल अवधारणा है। लेकिन अफसोस यह रहा कि 66वर्ष पूर्व जिस संकल्पना को लेकर स्वाधीन भारत की नींव रखी गई थी वह 66 वर्ष में मजाक बन कर रह गई। लोकतंत्र जेब में रखा वह रूमाल हो गया जिसे अपनी सुविधा, शासन और प्रशासन अपनी गंदगी पोंछने के लिए निकाल लेता है। जनता अपने ही प्रतिनिधियों द्वारा छली जाती है। देश का अरबों रुपया डकार जाने वाले लोकतंत्र के रक्षकनेताओं ने विकास और योजनाओं की प्रक्रिया में जनता की भागीदारी सुनिश्चित ही नहीं की।

“आजादी तीन थके हुए रंगो का नाम है जिसे एक पहिया ढोता है।" धूमिल की यह कविता संसद से सड़क तक की यात्रा का बयान करती है, लेकिन सड़क से संसद तक की आवाज नहीं पहुंचती। ऐसे समय में दिल्ली विधानसभा चुनाव आशा की किरण लेकर आया है। पारंपरिक राजनीति से परे आम आदमी पार्टीकी जनाकांक्षा को लेकर चुनावी मैदान में उतरी आपपार्टी ने दिल्ली में 28 सीटे जीतकर यह जता दिया कि सत्ता तंत्र ने जिस चुनाव को आम आदमी की पहुंच से दूर महामानवों का खेल बना दिया था दरअसल वह आम आदमी का चुनाव है। अरविंद केजरीवाल ने सत्ता से आम आदमी की दूरी मिटा दी। जनप्रतिनिधि को आम जनता से दूर करनेवाली वीआईपी संस्कृति का प्रतीक लाल बत्ती, जेड सुरक्षा, बड़ी गाड़ियां, बड़े बंगले सभी को खत्म कर जनता के नेता को जनता के बीच ही स्थापित किया। जनता की आकांक्षाओं को समझते हुए प्रशासन, शासन में पारदर्शिता लाकर वास्तव में जनता का शासन स्थापित किया। अरविंद केजरीवाल ने इस मिथ को तोड़ दिया कि चुनाव सिर्फ बाहुबल और तिकड़म से ही लड़ा जा सकता है। रामलीला मैदान लोकतंत्र के इस नए बनते इतिहास का गवाह रहा है।

जहाँ इस नयी हवा से सब प्रभावित हो रहे हैं,वहीँ बड़ा सवाल यह है कि भ्रष्टाचार, बेइमानी, वीआईपी संस्कृति से ग्रस्त खेल संघों पर भी क्या बदलाव संभव है ? क्योंकि खेल संघों को भी खेल हुक्मरानों का तथाकथितलोकतंत्र अभी तक काबिज है। जहां कहने को तो चुनाव कराये जाते हैं। लेकिन चुनकर वे ही लोग आते हैं जिनका खेल या आम खिलाड़ी के हितों से कोई सरोकार नहीं होता। नौकरशाह, मंत्री, उद्योगपति जैसे आम आदमियों के भीतर चुनाव होते हैं। ये खेल को खिलाड़ी के लिए नहीं बल्कि अपने-अपने व्यवसायों को लाभ पहुंचाने वाली संस्था के रूप में इन खेल संघों का प्रयोग करते हैं।

‘आप’ ने जिस तरह भ्रष्टाचार को राष्ट्रीय विमर्श बनाकर दिल्ली में जीत हासिल की है ,आशा है कि उसी प्रकार खेल संघों के भी भ्रष्टाचार को राष्ट्रीय विमर्श बनाकर भारतीय ओलिंपिक संघ की खोयी प्रतिष्ठा एवम वैधता को पुन; स्थापित करने का काम करेगी । इससे खिलाडियों का खोया विश्वास स्थापित होगा और भारत को सार्थक “भारत रत्न” मिल पाएँगे ।

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