Ads

Ads
Ads

क्रिकेट बॉसेज का वृद्धाश्रम



कुलविंदर सिंह कंग


अब इन लोगों के लिए एक वृद्धाश्रम बनाना ही पड़ेगा। सरकार और समाज दोनों से ही इसे मान्यता प्राप्त है और इसे बढ़ावा भी दिया जाता है। फिक्सिंग मामलों की समिति की सिफारिशों को लागू करने का जो कोर्ट का आदेश आया है उसके अनुसार 70 साल से अधिक का कोई भी व्यक्ति इसका पदाधिकारी नहीं रह सकता है। देखो! कैसी ज्यादती हो रही है, अब ये ही तो उम्र थी जब बुढ़ापे में इन सीटों पर बैठकर ऐश और आराम किया जा सकता था। सब पैसे की माया है। अब जब पैसा ही नहीं रहेगा तो? नो ऐश विदाउट कैश। इस उम्र में ये बेचारे कहां जाएंगे? बेचारे? मुझे तो हंसी आ रही है.. नोटों के चारे चरने वाले बेचारे कैसे हो सकते हैं?
कोर्ट ने इसके लिए छह महीने का समय दिया है। सीटों पर कब्जा किए ये बुढ़ऊ, जिनके घुटने दर्द करते थे, इस आदेश के बाद एकदम से मिल्खा सिंह की तरह दौड़ भाग करने लगे। अब ये भी डर सता रहा है कि मिल्खा सिंह की तरह कई रिकॉर्ड बनाने के बावजूद भी ये लोग कहीं चौथे नंबर पर न रह जाए, और जल्दी ही इनका चौथा करना पड़े।



क्रिकेट में जो स्वच्छता अभियान चला है, उसको देखते हुए देश में कोई एक भी ईमानदार आदमी नहीं मिलेगा, जिसे इस ऊंची कुर्सी पर बिठाया जाए। ना ना.. बिल्कुल भी नहीं। ये क्या बात हुई कि जब भी ईमानदारी और योग्यता की बात आती है.. आप सब लोग मेरी ओर क्यों देखने लग जाते हो? अब तो मेरे पास बिल्कुल भी टाइम नहीं होगा। जुलाई 2016 में सरकारी पद से मैं सेवा-निवृत भी हो गया हूं। अब तो मुझे जीवन यापन के लिए एक्टिव होकर काम करना पड़ेगा। पहले की बात कुछ और थी। सरकारी पेन पेंसिल और कागज-कलम उठाकर मैं रिवर्स किक लिख देता था। पहले तो हम सरकारी बंदे थे यानि की वेहले ही वेहले। पूछले वाला भी कोई नहीं था.. बल्कि महीने के अंत में हम खुद ही बैंक में जाकर पूछते थे कि सैलरी आ गई क्या

बात हो रही थी क्रिकेट बॉसेज के लिए एक वृद्धाश्रम बनाने की। क्या सारी जिंदगी इस देश के पैसे पर ऐश करने वाले बुढ़ापे में दाल रोटी को भी तरस जाएंगे? नहीं, मैं ऐसा हरगिज नहीं होने दूंगा..। मैं इनके लिए एक वृद्धाश्रम बनवाऊंगा और फिर इन लोगों से पूछूंगा.. सर। क्रिकेट के स्वर्गाश्रम से सीधे इस वृद्धाश्रम में आकर आपको कैसा लग रहा है? अब अगर ये लोग वृद्धाश्रम में रहेंगे तो इनको गुजारा भत्ता भी देना पड़ेगा। सवाल इस बात का है कि क्या इस सरकारी गुजारे भत्ते से इनका गुजारा हो पाएगा?

अब देश में दो तरह के कैंप लगेंगे.. एक तो क्रिकेट टीम की ट्रेनिंग के लिए और दूसरा इनकी आंखों की स्कैनिंग के लिए। इनकी मोतियाबिंद से लबालब आंखों पर इन्होंने पैसे और रूतबे की एक नकली आंख लगा रखी थी जिससे इनको कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। वृद्धाश्रम के इस आई स्कैनिंग कैंप में सबसे पहले इनकी आंखों में ईमानदारी की दवा डाली जाएगी। छोटी मोटी शीशी से नहीं बल्कि नगर निगम के टैंकर में भरकर एक बड़े पाइप से इनकी आंखों में दवा के फव्वारे छोड़े जाएंगे ताकि वर्षों से जमी मैल, धूल और पैसे की हेकड़ी निकल सके। दवा फुहारने के बाद इनकी आंखों पर चश्मा चढ़ाने की रस्म अदा की जाएगी, जिसमें ईमानदारी के शीशे लगे होंगे। इसके बाद इनको दिखाई दे जाएगा कि इन्होंने कितने होनहार खिलाड़ियों के साथ ज्यादती की थी। 

काश! ऐसा चश्मा इनकी आंखों पर पहले ही चढ़ा दिया गया होता तो आईपीएल में कोई भी खिलाड़ी अपनी कमर में तौलिया खोंसकर कोई कांड न कर पाता। उसी तौलिये ने कइयों के साथ-साथ अब इनकी पट्टी भी पोंछ दी है। उस तौलिये ने क्रिकेटीय ढ़ांचे में बनी बेईमानी की बुनाई की एक-एक डोर को खींच कर खोल दिया है।

इस आदेश में नेताओं को भी क्रिकेट की बड़ी पोस्टों से दूर रहने को कहा गया है। पहले नेता राजनीति के दायित्व तो कम निभाते थे और क्रिकेट की राजनीति में ज्यादा हिस्सा लेते थे। अब क्रिकेट से दूर रहेंगे तो मनमार कर जनता के काम करने पड़ेंगे और चुनावी वायदों को भी पूरा करना पड़ेगा। देश की जनता सर्वोपरि होती है और काम न करने वालों को वृद्धाश्रम में भेजने के साथ-साथ अगले चुनावों में श्री संती तौलिये से रगड़ा भी देती है। 

जनता में अब क्रिकेट का क्रेज भी कम हो रहा है.. अब नेताओं को गली-गली हाथ जोड़ने पड़ेंगे अन्यथा सीट से उतरते ही उनके कुकृत्य सामने आ जाएंगे और नेताओं के लिए बने आश्रम में पहुंच जाने का खतरा रहता है और उस आश्रम का नाम है तिहाड़ आश्रम

Leave a Comment

No comments: