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बिन खेल मैदान : भारत कैसे बने महान !



डॉ. अवधेश कुमार श्रोत्रिय


रियो में आयोजित 31’वे ग्रीष्मकालीन ओलिंपिक शायद पहला ऐसा ओलिंपिक होगा जिसको हर उम्र के भारतवासी नें अपनी दैनिक चर्चा का विषय बनाया। जिमनास्टिक जैसे खेल भी पहली बार चर्चा के विषय बने। अमूमन ऐसा गर्मजोशी का माहौल हिंदुस्तान में क्रिकेट के विश्व कप के दौरान ही देखने को मिलता हैं। शुरआती दौर की निराशा के बाद दो मैडल पाने की ख़ुशी हिंदुस्तान ने मनाई।

ओलिंपिक के समापन के कुछ दिनों बाद ही माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी नें टास्क फ़ोर्स गठित करने की बात कही।

फिलहाल गंभीर मंथन का विषय यह हैं कि खेल प्रतिभाओ के होने के बावजूद आज हम कुछ मेडलों तक ही सिमट कर रह गए हैं।  सरकारी प्रयासों से पिछले कुछ सालो में मिलने वाली आधुनिक सुविधाएं अपने आप में पर्याप्त हैं एक बेहतर प्रदर्शन के लिए। हालाँकि खिलाड़ियों की नई पौध को तैयार करने के लिए निचले स्तर पर मिलने वाली सुविधाएं अभी भी काफी नहीं हैं। ग्रामीण क्षेत्रो की खेल प्रतिभाओ और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2008 में  पंचायत युवा क्रीड़ा और खेल अभियान जैसी महत्वकांशी परियोजना आरम्भ की गयी लेकिन यह परियोजना भी भ्रष्टाचार और उदासीन रवैये की भेंट चढ़ती सी आसानी से देखी जा सकती हैं। अगर सुविधाओ के अभाव की वजह तलाशे तो सर्वप्रथम खेलने के अच्छे मैदानों का अभाव ही हैं जो की बेहतर खिलाड़ियों की उत्पति में कई प्रकार से रोड़े अड़ाता हैं। खेलो के मैदान विज्ञान की प्रयोगशाला की तरह होते हैं जहाँ विभिन्न प्रकार के प्रयोग करके जीवन शैली में रचनात्मक बदलाव किये जा सकता है। यह एक कटु सत्य हैं वर्तमान समय में कई सारे विद्यालयों, महाविद्यालयों एवं कुछ विश्विद्यालयों में खेलने के पर्याप्त बुनियादी सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे हालात में अंतर्राष्ट्रीय उपलब्धि की उम्मीद करना बेमानी है।

 कई शहरो के स्टेडियमों खस्ता हाल हैं। खेलो में निराशानजक प्रदर्शन और खिलाड़ियों की अन्तराष्ट्रीय खेल स्पर्धाओं में विफलताओं के कारण तलाशने को किये जाने वाले महंगे दौरों के बाद अपनी रिपोर्ट्स में बाहरी देशो की जलवायु को मुख्य कारण बताकर मंत्रालय को रिपोर्ट सौपने वाले लोगो को भी यह मानना ही पड़ेगा कि विदेशो की जलवायु को तो शायद हम भारत के अनुकूल न बना पाए लेकिन नए खेल के मैदानों का निर्माण और उपलब्ध मैदानों का जीर्णोद्धार तो आसानी से किया ही जा सकता हैं।

वर्तमान  हिंदुस्तान की गगनचुम्बी इमारतों के बीच भी मैदानों के लिए पर्याप्त जगह को न ढूंढ पाने से दुहाई देने से लाख गुना बेहतर हैं कि लाखो हेक्टेयर विवादित भूमि के टुकड़ो को ही खेलने के मैदान में तब्दील करने का पुरजोर प्रयास किया जाये I साथ ही शैक्षणिक संस्थाओ को भी  उपलब्ध बेहतर खेल मैदानों एवं अन्य जरुरी संसाधनों को एक निश्चित अवधि के लिए आवंटित करने से भी खेलों में गुणात्मक परिवर्तन आएगा। आदर्श सांसद ग्राम योजना के तहत अगर प्रत्येक सांसद भी अपने संसदीय क्षेत्र में एक मिनी स्टेडियम अथवा ग्रामीण खेलो के मैदान के निर्माण का संकल्प ले तो निश्चित रूप से हिंदुस्तान स्वस्थ भी होगा और खेलो में सशक्त भी।

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