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क्रिकेट में नोट बंदी की गुगली



कुलविंदर सिंह कंग

बाप बड़ा न भैय्या, सबसे बड़ा सौ वाला रूपैय्या। बड़े नोट तो सुपुर्दे खाक हो चुके हैं। पांच, दस, बीस, पचास और उनका सबसे बड़ा भाई सौ का नोट अपने पांच सौ नामक पिता और एक हजार चंद नाम के दादा जी के असामयिक निधन के बाद घर-बाहर की जिम्मेदारी उठाते हुए खुशी के आंसू बहा रहे हैं। बड़ों का साया सिर से उठते ही अचानक बड़ा बनना पड़ता है..। इनकी वैल्यू का तो अब पता चल रहा है।

अंग्रेज खिलाड़ी बेचारे बड़े ही गल्त टाइम पर क्रिकेट सीरीज खेलने भारत आए हैं। इस देश पर दो सौ साल राज करने वाले बेचारे अंग्रेज खिलाड़ी डी.ए., डी.ए. को तरस रहे हैं। क्रेडिट कार्ड तो ये लोग मशीन में स्वाइप करते हैं और चीर इनके दिल पड़ते हैं। ये वे मेहमान है जिन्हें अपने खाने-पीने का प्रबंध भी खुद ही करना पड़ रहा है।



भारतीय क्रिकेट बोर्ड की पोजीशन तो पहले से ही टाइट चल रही थी.. अब तो वे लोग छुट्टे पैसों और गुल्लक तोड़-तोड़कर मिले नोटों से ही अंग्रेजों की मेजबानी कर रहे हैं। पहली बार देखा है कि क्रिकेट भी उधार खेली जा रही है और चायवाला भी डायरी में उधार लिख-लिखकर चाय पिला रहा है। चाय बेचने वाले ने पूरे देश को ही लाइन में लगा दिया है जबकि बोर्ड तो पहले से ही लाइन में लगा था। इस नोट बंदी ने तो क्रिकेट की ट्रेन पर भी ब्रेक लगा दी, जो कि बेचारी पहले से ही सवार लोढ़ के कारण झटके खा-खाकर चल रही थी। इस देश को चाय तो अंग्रेजों की ही देन थी और देखो! यहां आकर अंग्रेज खिलाड़ी चाय तक पीने तो तरस गए हैं।

गुटबंदी के चक्कर में तो क्रिकेट पहले भी कई बार फंसी है परंतु जितनी बुरी तरह से लोढ़ बंदी के बाद अब नोट बंदी में फंसी है.. उसे तो कोढ़ में खाज ही कहा जा सकता है। लोढ़ के कारण तो पहले ही कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था.. नोट बंदी की गुगली ने रहे सहे रास्ते भी बंद कर दिए हैं।

पहले भारतीय टीम इतनी अच्छी नहीं होती थी, तब स्टेडियम भरे होते थे और भारतीय क्रिकेट बोर्ड मालामाल होता था.. अब टीम तो विराट रूप धारण करती जा रही है लेकिन स्टेडियम खाली हैं और बोर्ड कंगाल है। क्रिकेट में भी एक प्रकार से विमुद्रीकरण हो रहा है। क्रिकेट के सारे बड़े-बड़े उम्रदराज नोटों और वोटों को बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। देश में कालाधन और क्रिकेट में बूढ़ा धन अब अतीत की बात हो जाएंगे। क्रिकेट में भी अब बड़े वोटों के स्थान पर छोटे और चुस्त वोट ही चल पाएंगे। भारत-इंग्लैंड टेस्ट सीरीज में क्रिकेट कर्ता धर्ताओं को भी उतने ही पैसे निकालने की अनुमति है जितना पैसा बैंकों की लाइन में लगे लोगों को मिल पा रहा है। बैंकों की लाइन में तो फिर भी थोड़ा-थोड़ा कालाधन खपाया जा रहा है लेकिन अब क्रिकेट में तो बूढ़ा धन खपने के कोई चांस नहीं है।

क्रिकेट में कुछ लोगों का पद जा रहा है साथ ही जमा किया काला मद भी जा रहा है जिसे देख कर पूरा देश गद्-गद् हुआ जा रहा है। ना तो घर के रहे.. और ना ही घाट के.. अब तो लाले पड़ गए टाट के। समझ में ही नहीं आ रहा है कि कहां पर धूनी रमाए? धूनी रमा भी ली तो पकड़े जाएंगे.. क्योंकि धूनी में से घुआं निकलेगा और लोग बाग पूछेंगे कितने के नोट थे.. जो जलाने पड़े। बड़े लोगों के घर के सामने तो कबाड़ी वाला भी धीमे स्वर में आवाज लगाता है कि कहीं धन्ना सेठ रद्दी के नाम पर पांच सौ हजार के पुराने नोट ही ना तुलवा दे।

क्रिकेट तो वैसे भी शानदार अनिश्चितताओं का खेल है और अब तो पूरी भारतीय क्रिकेट पर ही संकट के बादल गहराते जा रहे हैं। गहरी अंधेरी सुरंग में बाहर जाने का कोई शार्टकट रास्ता ही नहीं है.. और रेंग-रेंग कर ही सुरंग पार करनी पड़ेगी। घोर अंधकार में कभी-कभार हल्के लोढ़ वाला एल.ई.डी. बल्ब जुगनूं की तरह चमककर रास्ता दिखाता है। क्रिकेट में ऐसी गुगली आज तक किसी ने नहीं फेंकी है। गुगली वैसे तो धूप-गर्मी से लबालब क्रिकेट मैदान पर ही डाली जाती है परंतु इस बार गुगली एयर कंडीशन्ड कमरों में डाली गई है और वहां बैठे लोगों को ये समझ ही नहीं आ रहा कि इसे खेले कैसे? कभी क्रिकेट खेली हो तो जाने। ये लोग तो बस दूसरे खेल ही खेलते रहे हैं।

क्रिकेट में भी नए नोट और वोट आने को तैयार बैठे है.. इस गुगली के स्टाइल को समझकर उसी के अनुसार ही चलना पड़ेगा अन्यथा आप लोग तो जानते ही हैं कि अनिल कुंबले ने गुगली डाल-डालकर विरोधी टीम के दसों विकेट उखाड़ डाले थे। कहीं अगर ऐसा हो गया तो देश की क्रिकेट पर बहुत बड़ा संकट आ जाएगा क्योंकि ढंग का आदमी तो कोई बचेगा ही नहीं और मेरे पास बोर्ड को संभालने का टाइम भी नहीं है। मैं बहुत बिजी हूं। मैं बोर्ड संभालू या पहले अपना घर देखूं? मेरी जेब काट-काट कर मेरी बीवी ने जो धन इकट्ठा किया था.. कालाधन मान कर उसने भी मेरे आगे घोषित कर दिया है। अब उसे भी मुझे ही ठिकाने लगाना है।

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