वर्ष 2016 बीत गया और दो “आदर्श” भी !
सन्नी गोंड़
साल 2016 समाप्त हो रहा है ।
जहाँ इस वर्ष खेल के नए नायक उभरे ,वहीँ कुछ नाम
फीके पड़ेI वर्ष 2016 में साक्षी मालिक , पी.वी.सिन्धु ,दीपा करमाकर ओलिंपिक में प्रशस्त हुए,वहीँ 2012 ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाले दो खिलाडी फीके पड़े। जी हाँ,यहाँ योगेश्वर दत्त और साइना नेहवाल का जिक्र
हो रहा है जिन्होंने कुश्ती और बैडमिंटन में कांस्य पदक जीत कर अनेकानेक
खिलाडियों को प्रेरित किया। 2012 ओलंपिक में योगेश्वर के लगातार मैच कौन भूल सकता
है जिसमें वह दनादन विरोधियों को चित्त किए जा रहे थे। और फूली हुई आंख के साथ
कांसे का पदक चबाते हुए उनकी तस्वीर। इन सब चीजों ने उनके लोगों के बीच आदर्श रूप
में स्थापित करने में एक बड़ी भूमिका निभाई। इसके अलावा योगेश्वर दत्त ने एशियाई
खेल, राष्ट्रमंडल खेल, एशियाई कुश्ती
चैंपियनशिप और राष्ट्रमंडल चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक अपने नाम किए हैं।
दूसरी ओर सायना नेहवाल। अगर आज
की नई पीढ़ी बैडमिंटन के बारे में जानती है तो उनके पीछे सायना का बहुत बड़ा हाथ
है। चीन, मलेशिया जैसे देशों की दीवार को भेदना तो
दूर उसके आस-पास भी फटकने की कोई भारतीय खिलाड़ी नहीं सोच सकता था। लेकिन सायना ने
उस दीवार को तोड़ दिया। 2008 में सायना में योनेक्स चायनीज ताइपे ओपन मलेशिया की
खिलाड़ी को हराकर और 2009 में इंडोनेशिया ओपन चीनी खिलाड़ी को हराकर जीता। उनकी
जीत का सिलसिला बहुत लंबा चला।
लेकिन 2016 की बात करें तो
दोनों ही खिलाड़ियों के लिए कुछ अच्छा नहीं रहा। दोनों खिलाड़ियों से ओलंपिक में
पदक की उम्मीद थी। लेकिन दोनों ने निराश किया। जहां सायना नेहवाल अपने घुटने के
चोट के कारण अपने सर्वश्रेष्ठ नहीं दे पाई। वहीं दूसरी ओर योगेश्वर के मैच के बाद उनकी
फिटनेस पर सवाल उठे। उनमें 2012 की तरह न तो जोश दिखा न जीत की ललक। ओलंपिक के बाद
ही दोनों के भविष्य को लेकर कयास लगाए जाने गए। सायना ने तो इसका जिक्र भी किया
था।
हाल ही में दो नीलामियां हुई।
पहली प्रो कुश्ती लीग जिसमें से योगेश्वर ने शादी के कारण अपना नाम वापस ले लिया।
इसके बाद उनके भविष्य को लेकर शंका और बलवती हो जाती है। दूसरी नीलामी बैडमिंटन
लीग की हुई जिसमें किसी भी ओनर ने सायना को खरीदने में दिलचस्पी नहीं दिखाई। इसके
बाद अवध वारियर्स ने उनके बेस प्राइस (33 लाख) पर उनको रिटेन किया। घुटने की सर्जरी
के बाद कोर्ट में जीत की लय में लौटना उनके लिए शायद आसान नहीं होगा। बैडमिंटन लीग
पर काफी हद तक उनके भविष्य की रूपरेखा निर्भर है। तो क्या हो जाएगा दो आदर्शों का
अंत? काश मैं गलत साबित हूं।
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