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मुझे तो पहले ही पता था!



कुलविंदर सिंह कंग

ये तो होना ही था। मुझे तो पहले से ही पता था। जब से नोट बंदी हुई है पूरा देश लाइन में लगा है। दूसरी ओर भारतीय क्रिकेट बोर्ड तो बेचारा आठ नवम्बर 2016 से भी पहले से हीलाइन में लगा है। इसके लिएबेचारा शब्द का प्रयोग करें तो दूसरे खेलों को आपत्ति हो सकती है। अजी! काहे का बेचारा। ये वो घमंडी अमीर आदमी हैं, जो कुछ दिन पहले तक अपनी शानदार कोठी की बालकोनी में सिगार फूंकते हुए गली के छोटे-छोटे गरीब बच्चों जैसे फुटबॉल, टेनिस, बैडमिंटन और उनकी छोटी बहनों हॉकी, कुश्ती और खो-खो को चिड़ाया करता था। आज तो ये सभी बच्चे अपने-अपने फ्लैटों में शिफ्ट हो चुके हैं और सिगार फूंकने वालों की कोठी के साथ-साथ ईज्जत भी नीलाम होने की नौबत आ गई है। इनकी तो पुरानी साख भी अब पांच-सौ हजार रुपए के नोटों की तरह नहीं चल पा रही है।

मुझे तो पहले ही पता था कि इनके साथ ऐसा होने वाला है। मेरी ज्योतिष विद्या इतनी तेज है कि मैं अभी से बता सकता हूं कि वर्ष 2017 भी साल भर से ज्यादा नहीं चलने वाला है। ये साल इन पर इतना भारी है कि साल 2016 बीतते-बीतते राहू, केतू, शनि, शुक्र सब क्रिकेट बोर्ड के एक ही घर में बैठे हैं और अनावश्यक लोढ की वजह से कइयों से घर खाली भी करवा देंगे और हो सकता है कि कइयों को अंदर भी करवा दें।

नोट बंदी के बाद जिस प्रकार से आम आदमी को रोजाना के ढाई हजार ही मिल पा रहे हैं, उसी तरह बोर्ड को भी मैच दर मैच ही खर्चे की रकम मिल पा रही है। इनको अगलों ने दूसरी तरह से लाइन में लगा रखा है। मुझे तो बोर्ड की अगले साल की राशि भी ठीक नहीं दिखाई दे रही है क्योंकि धनराशि होगी तो  ही राशिफल ठीक होगा। बोर्डवालों के चाहने वाले भी अब इनसे इस तरह बिदक रहे हैं जैसे 20 रुपए की सब्जी लेने पर दो हजार का नोट देखकर सब्जी वाला बिदक जाता है।



मुझे तो पहले ही पता था कि नोटबंदी के बाद बड़े बड़ों को दिक्कत आयेगी। हमें कोई फर्क ही नहीं पड़ा... लेखक की कलम में तो इतनी ही स्याही होती है कि साल चाहे नया हो या पुराना, महीने भर में एक आर्टिकल ही लिख पाती है। अगर लेखकों की कलम में भी अमीरों के नोटों जितनी स्याही होती तो अपनी अच्छी किस्मत ही ना लिख लेते। ये पहला अवसर है कि नोट बंदी के बाद अब हमें भी नंगपुणे का असली मजा आ रहा है। ना सफेद, ना काला धन... कोई हमसे क्या निकलवाएगा... किसी को जमां करवाने हों तो बताना... बैंक एकाउंट डिटेल वाट्सअप कर देंगे।

जहां पैसे चार.. वहीं पड़ती है मार। अब तो स्टेडियम की घास भी सूखने लगी है.. कहीं-कहीं से तो घास उड़ भी रही है। बोर्ड वाले अब स्टेडियम की उड़ती घास को देखें या अपनी टांट को देखे, जहां थोड़ी-थोड़ी देर बाद पड़ने वाले आर्डर-आर्डर के हथौड़े से गंज पड़ती जा रही है। मुझे तो पहले ही पता था कि नए साल में भी बोर्ड का राशिफल ज्यादा बदलने वाला नहीं है। हो सकता है कि भविष्य में भारतीय खिलाड़ियों को संभवत: पतंजलि द्वारा निर्मित विशुद्ध देसी क्रिकेट प्लेयिंग किट ही प्रयोग करनी पड़े जिसमें हिमालय की तराई से लाई गई विशुद्ध भारतीय जड़ी बूटियों की लकड़ी से बना बल्ला होगा। मूंज की रस्सियों से बनाई गई विशुद्ध भारतीय गेंद का प्रयोग करना होगा जिस पर अरारोट का कवर चढ़ा होगा। गाय के गोबर से निर्मित पिच पर खेल होगा और प्रत्येक मैच से पहले पिच को भारतीयता का रंग देने के लिए गोबर से दोबारा लीपना अनिवार्य होगा।

मैच से पहले खिलाड़ियों को दंत कांति से दांत साफ करने होंगे ताकि उनके प्रदर्शन में चमक आ सके और विदेशी खिलाड़ियों को अनिवार्य रूप से नीम की दातुन करवाई जाएगी ताकि अपने देश लौटकर वे लोग अपनी मीडिया को कहते फिरें कि ये दौरा उनके लिए एक बड़ा ही कड़वा अनुभव था।

देसी विदेशी अंपायरों को भी बाबा रामदेव जैसे वस्त्र धारण करने होंगे लेकिन मौका आने पर महिलाओं के वस्त्र पहनकर छलांग मार कर भागना मना होगा। चौका लगने पर आलोम विलोम और छक्का लगने की स्थिति में अंपायर को दोनों हाथ ऊपर उठाकर कमालभाती करना अनिवार्य होगा। खिलाड़ी अपील के स्थान पर अंपायर को सूर्य नमस्कार करेंगे। बादल होने की स्थिति में एक टांग पर किया गया नमस्कार भी अपील की श्रेणी में ही गिना जाएगा।

मैच जीतने वाली टीम हारने वाली टीम को जब तक चाहे शीर्षासन करवा सकती है और भारतीय टीम ने आखिरी मैच जीतकर इंग्लैंड का सूपड़ा साफ कर दिया है परंतु मुझे तो पहले ही पता है कि जीतने पर भारतीय टीम शीर्षासन के स्थान पर बैंकासन करवाएगी ताकि घर चलाने के लिए हारे हुए खिलाड़ियों को ए.टी.एम की लाइन लगवा कर पैसे तो निकलवा सके। 

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