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खिलाड़ी तो ‘पाला’ नहीं बदलते : ठोंको ताली !



स्मिता मिश्र

हिन्दुस्तान में खेलों में खेल है- क्रिकेट और खिलाड़ियों में खिलाड़ी होते हैं- क्रिकेटर। जो भी खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में भारत का प्रतिनिधित्व कर लेता है वह अपने आप में शख्सियत हो जाता है। खेल से रिटायर होने या कर दिए जाने के बाद उसका अगला पड़ाव टीवी कमेंट्री और फिर उससे आगे राजनीति होता है। जहां वह किसी पार्टी को विचारधारा के तहत नहीं बल्कि पार्टी में मिलने वाले स्टेटस के आधार पर पार्टी चुन लेते हैं ऐसा ही फिल्मी सितारों के साथ भी होता है। जहाँ राजनीति उन्हें अपने कैरियर का अगला पड़ाव लगती है। 

फिलहाल इस प्रक्रिया में काफी पहले जुड़े क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू इस समय फिर से चर्चा में है। भाजपा के पूर्व सांसद रहे सिद्धू कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। उनकी भाजपा से कांग्रेस तक की यात्रा वाया आप पार्टी और आवाज ए पंजाब के रास्ते हुई। 

रामकथा भी बड़ी गजब की चीज है। प्रत्येक व्यक्ति अपनी मुसीबत में रामकथा को उद्धृत करता रहता है। सिद्धू ने कांग्रेस में शामिल होने को घर-वापसी कहा। किसी को कैकयी तो किसी को मंथरा। सिद्धू ने खेल के मैदान से इतना नाम नहीं कमाया जितना कि मैदान के बाहर के कामों से।

चाहे चुटकुलिया अंदाज में क्रिकेट कमेंट्री हो या फिर कामेडी नाइट्स के ठहाकों से। किसी को केवल हंसने के ही इतने पैसे मिल सकते हैं, यह भी चमत्कार सिद्धू ने ही किया। टेलीविजन के बाद सिद्धू की महत्वाकांक्षा और परवान चढ़ी और राजनीति में भी हाथ आजमाया।सफल भी रहे, पहले लोकसभा सांसद फिर राज्यसभा सांसद।  बतौर सांसद उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र के विकास को कितना समय दिया, वह अलग बात है। 

2014 में उनकी जगह अरुण जेटली को टिकट दिए जाने से नाराज़ सिद्धू  ने भाजपा का विकल्प ढूँढना शुरू कियालोकसभा सांसद से राज्यसभा सांसद में तब्दील होना, भाजपा से त्यागपत्र फिर आप में मुख्यमंत्री पद की डिमांड न पूरी होना, आवाज ए पंजाब पार्टी बना लेना और फिर कांग्रेस में घर वापसी करना। पिछले कुछ महीनों से सिद्धू की घनघोर भागादौड़ी रही। हालांकि उन्होंने इसे पंजाब के अस्तित्व की लड़ाई बताया लेकिन यह सिद्धू के महत्वकांक्षा की लाड़ाई दिख रही है। 

पंजाब के मुद्दों की लड़ाई का दावा करने वाले सिद्धू जी मूलत: अपने पद की लड़ाई लड़ने लगे और लड़ते-लड़ते पाला बदल लिया। हमें तो यह पता है कि खेल के मैदान में जितना भी विकट और संकट का समय हो खिलाड़ी कभी भी पाला नहीं बदलता, वह डटा रहता है अपने पाले में अपनी टीम के लिए।

सिद्धू जी को यह ध्यान रखना चाहिए कि वे मूलत: खिलाड़ी है और स्पोर्ट्समैन स्पिरिट ही खिलाड़ी की पहचान होती है। वे मुख्यमंत्री पद की होड़ में कहीं अपनी मूलभूत पहचान से बहुत दूर न चले जाए। क्योंकि खिलाड़ी पाला नहीं बदलता वह जी जान से खेल को बचाने की कोशिश करता है। ठोंको ताली।   

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