क्रिकेट के रोजगार समाचार
कुलविंदर सिंह कंग
ज़रूरत है एक ऐसे
व्यक्ति की जो भारतीय क्रिकेट बोर्ड को चला सके। इसमें से मैंने ‘कंट्रोल’
शब्द इसलिए हटा दिया है क्योंकि ये बोर्ड और बोर्ड के बंदे ही ‘आउट
ऑफ कंट्रोल’ हो गये थे। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को कंट्रोल
करने के लिए ही इतना ‘लोढ़’ बढ़ाया गया है।
इसको चलाने वाले ज्यादातर लोग तो पतली गली से निकल लिए। इस पर इतना ज्यादा
कंट्रोल बटन लगा दिया गया है कि अब तो इसे कोई ‘एलियन’ ही
आकर चला सकता है। सभी पुराने कारतूस तो अब ‘क्रिकेट
बोर्ड म्यूजियम’ के शो केस की शोभा बढ़ाएंगे। राम भजन करने वाली इस उम्र
में जो क्रिकेट बॉसेज ‘चीयर्स’ करते हुए चीयर्स लीडर्स के ठुमकों के मजे ले रहे थे..
और बीच-बीच में उन्हें अपनी नजर का चश्मा साफ करना पड़ता था, लेकिन अब वे लोग खुद
ही ‘साफ’ हो गए। वे लोग शायद ये भूल गये थे कि नमी तो सिर्फ
विकेट पर ही हो सकती है, उनकी जिंदगी की पिच तो कब की सूख चुकी है।
ये सारे बुढ़ऊ बिग बॉसेज मैचों के दौरान स्टेडियम में काला चश्मा लगाकर तो
ऐसे बैठते थे जैसे कि वे ही असली सन्नी देओल हो। जिसे वो अपना ढ़ाई किलो का हाथ
समझते थे, वो अब ढ़ाई सौ ग्राम का भी नहीं रह गया है। काले चश्मे वाले रूतबे की तो
इन्हें इतनी आदत हो गयी थी कि डे-नाइट मैच में फ्लड लाइट्स भी इन्हें चुभने लगती
थी। मैदान पर खेलने वाले खिलाड़ी तो कम लगाते थे जबकि इनके चेहरों पर ‘सन
स्क्रीन क्रीम’ की परतें ज्यादा चढ़ी होती थीं। समय का फेर देखिए!
यहां स्किन गॉर्ड क्रीमें भी काम नहीं आई.. इतना ‘लोढ़’
पड़ा कि स्किन ही बर्न हो गई।
अब मेरे लिए दो काम बढ़ गए हैं। मैं अकेला बंदा क्या-क्या काम करूं? एक
तो बोर्ड चलाने के लिए बंदा चाहिए और दूसरे इन राम भजनी बंदों के लिए कोई
हल्का-फुल्का काम ढूंढ़ना ताकि इनका गुजारा हो सके। इनमें से कई लोग तो अगर टी.वी.
मैकेनिक बन जाए तो बेहतर होगा। टी.वी. ठीक करने के बहाने मैच वाला चैनल लगाकर आराम
से मैच देख लेंगे क्योंकि अब इन्हें स्टेडियम में जाकर मैच देखने के लिए वी.आई.पी.
पास तो मिलने से रहे। इसके अलावा और भी कुछ काम हो सकते हैं जैसे कि स्टेडियम के
बाहर सेंक-सेंक कर भुट्टे बेचना क्योंकि इन्हें चीयर लीडर्स को देखकर आँखे सेंकने
का अनुभव जो है। सन स्क्रीन क्रीम बेचना, साइकिल, स्कूटर और कार पार्किंग का ठेका
लेने जैसे हल्के-फुल्के काम भी कर सकते हैं क्योंकि शाम होते-होते इन्हें वैसे भी ‘ठेका’
दिखने लग जाता था। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क परियोजना में जाकर भी काम कर सकते
हैं क्योंकि ये लोग खुद भी तो ‘सड़क’ पर आ गए हैं।
क्रिकेट चयन समिति के सदस्य रहे लोग पहले भारतीय क्रिकेट टीम के लिए
खिलाड़ी छांटते थे.. अब सब्जी मंडी जाकर दुकानों पर ‘प्याज-टमाटर’
छांट सकते हैं.. और मौका पड़ते ही घर के लिए थैला भी भर सकते हैं, जैसे क्रिकेट
में अपना ‘घर’ भरते रहे हैं। सब्जी मंडी की भीड़ को देखकर खचाखच भरे
स्टेडियम की फीलिंग ले सकते हैं। राज्य संघों में भी बहुत से बुढ़ऊ फारिग हुए
होंगे.. वे लोग इन्टर स्टेट बिजनैस कर सकते हैं। क्रिकेट मैचों के लिए इन्होंने
बहुत से पैकेज बना कर चैनलों को बेचे होंगे.. चैन्नई वाला बंदा मोहाली स्टेडियम के
बाहर पंजाबियों को इडली डोसे के नाम पर कुछ भी बेच सकता है.. साथ में चटनी फ्री तो
लोग दौड़े चले आयेंगे। कोलकत्ता वाला चैन्नई में रशोगुल्ला और पंजाब वाला ईडन
गार्डन्स ग्राउंड के बाहर सरसों दा साग और मक्के दी रोटी बेचेगा तो अन्तर्राज्यीय
सद्भाव पैदा होगा। स्टेडियम के बाहर सूखी लीचियों पर लाल रंग स्प्रे से पेंट करके
महंगे दामों पर बेच सकते हैं.. ठीक वैसे ही जैसे अपने किसी चहेते को एक बड़ा
खिलाड़ी पेंट करके भारत की ओर से मैचों में खिलवाया करते थे। इन्हें तो कई होनहार
खिलाड़ियों का उज्जवल भविष्य डुबोने का अच्छा खासा अनुभव है इसलिए सिंघाड़ों को
पानी में डुबो-डुबो कर बेच सकते हैं।
बोर्ड तो मैं संभाल सकता हूं और इनके लिए काम ढूंढ़ने की मेरी जिम्मेवारी..
बस, इनकी काम करने की नीयत होनी चाहिए जो कभी हो नहीं सकती क्योंकि इन्होंने
बॉसगिरी और दादागिरी के अलावा कभी कोई और काम किया ही नहीं। अब यहां क्रिकेट में
इनकी बॉसगिरी नहीं चलेगी और घर पर इनकी दादागिरी कोई नहीं चलने देगा। इनकी
घरवालियां इन्हें ‘मुंडू’ बनाकर घर के छोटे-मोटे काम करवाया करेंगी। ताना भी मारा
करेंगी- “यूं तो कहते हो मैंने इतने मैच खिलवाये हैं.. दो मिनट के
लिए पोते को गोद में नहीं खिला सकते?” घर पर पोचा लगाते
समय कामवाली बाई भी इन्हें इनकी असली औकात बता देगी.. “दादाजी! जब
तक फर्श का पोचा सूख न जाए.. बैड से नीचे नहीं उतरना।”
दादा जी शब्द शूल की तरह चुभेगा.. काला चश्मा तो क्या नजर वाले चश्मे से भी दिखना
बंद हो जाएगा। दोनों तरफ से ‘लोढ़’ बढ़ जाएगा ‘एक ऊंची सीट पर वापिस
जाने नहीं देगा और घर पर इन्हें कोई बैड से भी नीचे उतरने नहीं देगा।’
बैड पर लेटे-लेटे छत पर लटके पंखे के विंग्स में ही इन्हें ‘तीन
लोक’ दिखाई देने लग जाएंगे। क्रिकेट के दूतों को अब सिर्फ
यमदूत ही दिखाई देंगे। यहां पर मुझे इनके लिए सुप्रसिद्ध कवित्री अनामिका जैन का
लिखा एक शेर याद आ रहा है:-
“जैसा
तन दिख रहा, वैसा मन कीजिये
चीनी कम का ना कोई जतन कीजिये
तीर्थ के दौर में प्रेम करते नहीं
ये उम्र है भजन की, भजन कीजिये !!!”
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