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ताकि हौसला हो बुलंद ...



स्मिता मिश्र

मार्च का महीना यूं तो कई वजहों के लिए जाना जाता है। इन वजहों में सबसे प्रचलित और लोकप्रिय वजह है रंगों का त्योहार, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर की बात करे तो इस महीने में एक तारीख महिलाओं के नाम भी है। इस दिन वह लोग भी महिला सशक्तिकरण की बात करने लगते हैं जिन्हें शायद इसका अर्थ भी न पता हो। चलिए आप लोग समझदार है आपसे एक सवाल, अब पत्र खेल का है तो सवाल भी खेल से ही जुड़ा होगा। लंदन ओलंपिक के बाद उभरती हुई पांच महिला खिलाड़ियों के नाम बताएं।

क्या हुआ दिमाग पर ज्यादा जोर डालना पड़ रहा है? दो खिलाड़ियों के नाम तो बता ही सकते हैं जिन्होंने रियो में भारत की इज्जत बचाई थी। हां यह बात अलग है कि अन्य खिलाड़ियों के लिए ज्यादा कोशिश करनी होगी। इसके लिए दो तरह की स्थितियां जिम्मेदार हो सकती हैं कि पहली तो यह कि कोई महिला खिलाड़ी ऐसी निकली ही न हो जिसे उभरता हुआ टैलेंट कहा जा सके। दूसरी स्थिति यह हो सकती है कि टैलेंट निकला हो लेकिन हमें उसके बारे में जानकारी न हो। दोनों में से कोई भी परिस्थिति जिम्मेदार हो, वे चिंताजनक हैं। लंदन ओलंपिक की पूर्व संध्या पर शुरू हुए स्पोर्ट्स क्रीड़ा के पहले संपादकीय में खेल क्षेत्र को पुरुष प्रधान बताया गया था। स्थिति में ज्यादा बदलाव नहीं आया है। महिलाएं अपने दम पर आगे आईं और जीती लेकिन जीत के बाद फिर वही ढाक के तीन पात।  

भारत में प्रतिभा की कभी कमी नही रही है। लेकिन उसे संवारने में मेहनत और समय लगता है। हाल ही में एक मीडिया रिपोर्ट में दीपिका कुमारी ने ओलंपिक की तैयारियों के सवाल पर कहा कि ओलंपिक से पहले हर कोई पदक की आस लगाकर बैठ जाता है, लेकिन खिलाड़ियों को दी जाने वाली सुविधाओं पर किसी का ध्यान नहीं जाता है। किसी भी तीरंदाज को ओलंपिक स्तर की सुविधाएं नहीं दी जाती हैं। दीपिका को रियो ओलंपिक में पदक का दावेदार माना जा रहा था।

दरअसल खेल की तैयारियों में मात्र उपकरण उपलब्ध कराना ही नहीं होता बल्कि खेल मनोविश्लेषक भी जरूरी होता है। यानी खेल की कोचिंग ही नहीं बल्कि दिमाग की कोचिंग भी जरूरी है। हमारे अनेक खिलाडी ऐसे हैं जो विशिष्ट प्रतिभावान है किन्तु ओलंपिक या एशियाई खेलों में इतना मानसिक दबाव में होते हैं की उससे उबर नहीं पाते, खास तौर पर लड़कियां। हमारे खिलाडी प्रायः निम्न सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति से आते है। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में आत्मविश्वास लड़खड़ा जाता है। ऐसे में स्पोर्ट्स साइकोलोजिस्ट की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। इसलिए खेल प्रशासन को उम्दा स्टार के स्पोर्ट्स साइकोलोजिस्ट भी तैयार करने होंगे जो प्रतिभावान खिलाडी को चैंपियन खिलाडी में तब्दील करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सके।

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