आपसी होड़ और आधुनिक चकाचौंध में खोता किला रायपुर
अमित कुमार
किला रायपुर! नाम जुबान पर आते ही दिलो-दिमाग में पारंपरिक पोशाक में बैलों
या घोड़ों की रेस करते सिखों का चेहरा सामने आ जाता है। देश ही नहीं बल्कि दुनिया
भर में ग्रामीण खेलों के इस आयोजन को ‘भारतीय ओलंपिक’ या
‘ग्रामीण ओलंपिक’ के नाम से पहचाना
जाता है। बचपन से इन खेलों के बारे में सुनता आया था, तो एक
बार यहां जरूर जाना चाहता था। इस बार यह मौका मिल गया। 17 से
19 फरवरी तक चले इस ग्रामीणोत्सव का हिस्सा होने के लिए मैं
भी किला रायपुर पहुंच गया। लुधियाना से महज आधे घंटे की ड्राइव में न जाने कितने बरसों के सपने आंखों
में तैर गए थे। लेकिन...।
जब मैं किला रायपुर के उस स्टेडियम में पहुंचा, जहां ग्रामीण
खेलों का आयोजन हो रहा था, थोड़ी निराशा हाथ लगी। देखने में
किसी गांव के मेले से ज्यादा नहीं लग रहा था, दुनिया के मैप पर
धूम मचाने वाला यह उत्सव।
गूगल के मैप पर पंजाब की पहचान
लंबे समय से किला रायपुर के ग्रामीण खेल गूगल के मैप पर पंजाब को एक नई
पहचान देते रहे हैं। देश—विदेश के फोटोग्राफर और पर्यटक इन खेलों का गवाह बनने के लिए पंजाब की धरती पर कदम रखते रहे
हैं। यहां तक कि पंजाब के ग्रामीण पर्यटन को भी बढ़ावा देने में इन खेलों का बड़ा
योगदान रहा है।
कभी बुलानी पड़ती थी आर्मी
मगर साल दर साल इन खेलों को लेकर उत्साह थोड़ा कम होता जा रहा है। इक्का—दुक्का विदेशी
पर्यटकों को छोड़ दें, तो यह महोत्सव बस स्थानीय लोगों का ही
जमावड़ा दिखाई देने लगा है। लंबे समय से किला रायपुर के खेलों को कवर कर रहे एक
स्थानीय पत्रकार से मुलाकात हुई। वो यहां के आयोजनों से थोड़ा निराश थे। कहते हैं—पैसों की कोई कमी नहीं है। एनआरआई अच्छी खासी फंडिंग करते हैं। यहां तक कि
खेलों की लोकप्रियता को देखते हुए स्पांसर भी अच्छे आ जाते हैं। मगर तैयारियां आधी—अधूरी ही रहती हैं। खाली पड़े स्टेडियम की ओर इशारा करते हुए वह बताते हैं—एक समय था जब यहां पांव रखने की भी जगह नहीं होती थी। भीड़ को नियंत्रित
करने के लिए आर्मी तक को बुलाना पड़ता था। मगर अब ऐसा नहीं है।
अब हर गांव में ग्रामीण खेल
पिछले 22 साल से किला रायपुर
खेलों के गवाह बने एक स्थानीय निवासी दलजीत सिंह बताते हैं कि इसकी एक बड़ी वजह यह
भी है कि अब पंजाब के हर जिले या कहें कि हर गांव में ग्रामीण खेलों का आयोजन होने
लगा है। एनआरआई फंडिंग अच्छी है, इसलिए भी इसके आयोजनों की संख्या में बढ़ोतरी हो गइग् है।
आपसी प्रतिस्पर्धा की होड़ में किला रायपुर की चमक थोड़ी फीकी होती जा रही है।
मनोरंजन के बढ़ते साधनों में चमक हुई फीकी
एक बुजुर्ग से बात हुई तो उन्होंने बताया कि पहले लोगों के पास मनोरंजन के साधन
कम थे। इसलिए वे इन खेलों का लुत्फ उठाने के लिए दूर—दूर से यहां आते थे।
मगर अब युवाओं के पास मनोरंजन के ढेरों साधन हैं। ऐसे में उनकी रुचि इसमें कम हुई
है।
कुछ खेलों के बंद होने का भी असर
किला रायपुर के खेलों का मुख्य आकर्षण बैलगाड़ियों की रेस हुआ करती थी। मगर 2014 में सुप्रीम
कोर्ट ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इसका प्रभाव भी खेलों पर पड़ा है। इसकी
भरपाई के लिए जिन डमी खेलों को शामिल किया गया, उनमें लोगों
की ज्यादा रुचि नहीं दिखाई दी।
81 साल से लगातार हो रहा आयोजन
समाजसेवी इंदर सिंह ग्रेवाल ने 1933 में ग्रामीण खेलों को लोकप्रिय
बनाने का सपना देखा था। वह चाहते थे कि पारंपरिक खेलों और ग्रामीणों को भी अपनी
प्रतिभा दिखाने का उचित मंच मिल सके। तब से लेकर इन खेलों का पिछले 81 साल से आयोजन हो रहा है। शुरुआत के बाद से इसकी लोकप्रियता में लगातार
इजाफा होता ही चला गया। अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड में रहने वाली भारतीय आबादी के साथ—साथ विदेशियों
में यह उत्सुकता का विषय बना रहा।
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