काकरान का यक्ष प्रश्न!/स्मिता मिश्र

हमारे देश की राजनीति कर्म की राजनीति नहीं है। हमारे देश की राजनीति
बयानबाजी की राजनीति है, नारों की राजनीति है, आश्वासनों की राजनीति है। हमारे देश के नेता अपने कार्यों से नहीं बल्कि झूठे आश्वासनों का पानी पिला-पिला कर
पांच साल राज करते हैं। और फिर पांच साल बाद पुराने आश्वासनों पर नए वायदों का
पानी चढ़ा कर फिर राजनीति की मार्केट में
आ जाते हैं।
ऐसे में जब कोई व्यक्ति तमाम संघर्षों से जूझते हुए सफलता पाता है तो वे ही
राजनीतिज्ञ ताल ठोंक सीना फूला कर उस सफलता को अपनी सरकार की सफलता में गिनवाते
थकते नहीं। ऐसा ही कुछ हाल एशियाई खेलों में दिल्ली के खिलाड़ियों के सम्मान में
पिछले दिनों जकार्ता एशियाई खेलों में दिल्ली के विजेता खिलाडियों का सम्मान समारोह में हुआ। दिल्ली सरकार द्वारा
आयोजित इस समारोह में 68 किलो ग्राम वर्ग में कांस्य पदक विजेता महिला पहलवान
दिव्या काकरान ने दिल्ली के मुख्यमंत्री
एवं उनकी सरकार को सच्चाई का आईना दिखाया। उनकी शिकायत थी कि दिल्ली में अभ्यास के
लिए स्थानाभाव के कारण वे उत्तर प्रदेश में अभ्यास करने जाती है। राष्ट्रमंडल
खेलों में पदक जीतने के बाद दिल्ली सरकार ने वायदा किया था उनकी ट्रेनिंग के लिए
सुविधाएं जुटाने का। सुविधाएं जुटाने की तो दूर रही अधिकारियों ने उनके फोन उठाने
भी बंद कर दिए। सरकार पदक जीतने के बाद ही क्यों मदद के लिए आती है ,पहले क्यों
नहीं मदद देती ?
यह कड़वा सच है कि दिल्ली में गरीब बच्चे खिलाड़ियों के लिए खेल सुविधाएं न
के बराबर हैं। मंहगी-मंहगी प्राइवेट खेल अकादमियों ने सरकारी-गैर सरकारी खेल मैदान
की मंहगा किराया देकर कब्जा लिया है। इन अकादमियों में एलीट परिवारों के बच्चे
मंहगी फीस देकर प्रशिक्षण लेते हैं।
दिल्ली राज्य सरकार और केंद्र
सरकार दोनों का गढ़ होने के बावजूद खेल सुविधाओं में फिसड्डी है। बड़े-बड़े खिलाड़ियों
ने अपनी-अपनी एकेडमी खोली है। फेडरेशन के साथ जुड़ाव भी रहता है,जिससे कि इन
एकेडमी के खिलाड़ी राज्य टीमों में अपेक्षाकृत आसानी से स्थान पा जाते हैं।
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