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खेल संघों में भी चाहिए दुर्गा की शक्ति


स्मिता मिश्र

हाल ही में ग्रेटर नोएडा की आईएस अधिकारी दुर्गा नागपाल के निलबंन के मुद्दे ने देश मे एक राष्ट्रव्यापी हलचल मचा दी है। इलाके के रेत खनन माफिया के खिलाफ कानूनी प्रकिया के तहत कार्रवाई करने वाली अधिकारी उन लोगों को रास नहीं आ रही थी जिनके ‘हित’ रेत खनन से जुड़े हुए थे। ऐसे रसूखदार लोगों ने सार्वजनिक सभा में अत्यंत उत्साहित होकर यह घोषणा भी कर दी कि इस कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी का उन्होंने मात्र 45 मिनट में निलंबन करवा दिया।

अब इस घटना को मीडिया द्वारा दिखाए जाने पर पूरे देश में तरह-तरह के प्रश्न उठ रहे हैं। जैसे लोकतंत्र आखिर है क्या? और लोकतंत्र के रक्षक ये नेता ही है या नेताओं से अलग भी इसका कोई अस्तित्व है? एक आईएस अधिकारी बनने की प्रक्रिया और एक नेता बनने की प्रक्रिया की तुलना करें तो देखते है कि ज्ञान साधना की लंबी प्रक्रिया से गुजरने के बाद जब युवा देश की सर्वाधिक प्रतिष्ठित प्रशासनिक सेवा में आता है तो उसके ह्रदय में अपने समय और समाज की बेहतरी के लिए गुणात्मक कार्य करने का जज्बा होता है। समस्या तब होती है जब कम योग्यता वाले नेता इन अधिकारियों के आका बन जाते हैं। आजकल सत्ता कई प्रकार के गठजोड़ से बनती है। इस गठजोड़ में भिन्न-भिन्न स्वार्थ होते हैं जिनकी रक्षा सत्ता पर काबिज नेता को करनी होता है। कई बार हालत तो यह होती है कि जिस पुलिस अधिकारी ने जिन लोगों को कानून के अंतर्गत जेल में पहुंचाया होता है। वे ही अपराधी लोकतंत्र के रक्षक बनकर आते हैं और उन्हीं पुलिस अधिकारी को ऐसे नेताओं की सुरक्षा में खड़ा होना पड़ता है।

भारतीय खेल संघ भी इससे अछूते नहीं है चाहे राष्ट्रमंडल खेल घोटालों का मसला हो या फिर क्रिकेट सट्टेबाजी का। राष्ट्रमंडल घोटालों के आरोपी न केवल जेल से बाहर आए बल्कि सीना ठोककर वापिस खेल संघों में चुनाव भी लड़ा। चरण-वंदना करने वाले लोग न अन्य खेल संघों में कम है और न ही बीसीसीआई में। भारतीय राजनीति की यह बीमारी भारतीय खेल संघों को भी बीमार किए हुए है।

उम्र के आखिरी पड़ाव में भी कुर्सी से चिपके रहने का लालच भी कम नहीं होता। स्त्री सशक्तिकरण के तमाम वायदे और नारे भारतीय खेल संघों में बेमानी से लगते हैं। संसद में स्त्री के अधिकारों की बात करने वाले सांसद खेल संघों में आकर स्त्री को वंचित ही रखते हैं। खेल संघों में महिला पदाधिकारी दूर-दूर तक नहीं दिखाई पड़ती।

खेल संघों में भी दुर्गा शक्ति की आवश्यकता है जो भारतीय खेलों और खिलाडि़यों के दोहन और खनन को रोके। दुर्गा नागपाल ने बिना भयभीत हुए कानूनी और संवैधानिक तरीके से लोकतंत्र की बहाली की कोशिश की। दुर्गा की तरह खेल संघों को अच्छे प्रशासनिक अधिकारियों की जरूरत है जो बिना किसी दबाव में आए वही कदम उठाए जो खेल और खिलाडि़यों के भविष्य के लिए सही हो।    

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