जहाँ पनाह! तुसी ग्रेट हो
कुलविंदर सिंह 'कंग'
वाकई जनाब श्री निवासन जी तुसी ग्रेट हो। खुद ही नो बॉल डालकर खुद ही फ्री हिट लगाने चले थे। मैदान वाले अंपायर धृतराष्ट्र हो सकते हैं लेकिन कानून की तो आंखे खुली रहती है। बल्कि कई बार तो कानून वक्त पर ऐसा जलवा दिखाता है कि सामने वाले की भी आंखें खुली की खुली रह जाती है।
आये थे टाई बांध कर अध्यक्षता करने वो भी बिना टिकट, कानून के गार्ड ने ट्रेन पर ही नहीं चढ़ने दिया। क्लीन चिट वाली टिकट भी दिखाने की कोशिश की लेकिन सब बेकार। ट्रेन ही रद्द करनी पड़ी। अब सारी सवारियां प्लेटफार्म पर ही खड़ीं हैं।
श्री निवासन की चेन्नई एक्सप्रैस भी नहीं चल पाई, जहां मुलजिम और मुंसिफ एक ही स्टेशन के थे। चेन्नई एक्सप्रैस चली जरूर लेकिन कानून ने पटरी ही बदल दी और ट्रेन अब ‘कोर्ट’ यार्ड में खड़ी है। पुलिस मेनरोड पर नाका लगाये बैठी थी और जनाब निकलने लगे थे पतली गली से।
मात्र दो महीने में जांच रिपोर्ट भी आ गई। क्लीन चिट! नथिंग सीरियस। दामाद-ससुर दोनों बेकसूर हैं। इतनी तेजी दिखाई कि जनाब निरमा वाशिंग पाउडर ईश्टाइल में सब काम कम्पलीट। बस! भिगोया-धोया-- और हो गया। इस देश में क्रिकेट एक धर्म है और क्रिकेट खिलाड़ी भगवान की तरह पूजे जाते हैं लेकिन ये तो जनाब खिलाडि़यों के भी खिलाड़ी निकले। श्री कृष्ण ने बचपन में चुरा-चुराकर माखन खाया था आज भी भगवान के साथ-साथ माखन चोर कहलाते हैं। दामाद-सुसर को मलाई चोर ही बता देते तो शायद काम चल जाता।
क्या करें जनाब। इस देश में कुर्सी और पैसे वालों को ही सलाम होता है। अमीर क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्षजी से पुलिस वाले सिर्फ रिक्वेस्ट ही करते रहे, दबाव नहीं डाल पाए। श्रीसंत, चंदीला और विंदु की तरह जरा सा पुलिसिया पट्टा चढ़ाया होता तो दामाद-ससुर तो क्या पूरा खानदान ही बोल पड़ता। एक पट्टा पड़ते ही सारी टाईयां ढीली हो जानी थी। एक पंजाबी कहावत है ना “जिसदे घर दाणे, ओसदे कमले वी सयाणे”।
जनाब ने कुर्सी छोड़ी नहीं थी बल्कि दो महीने के लिए कुर्सी से दूर रहने का नाटक कर रहे थे और कुर्सी की एक टांग अपनी टाई के साथ बांधे रखी कि क्या पता कहीं डालमियां का मन ही ना डोल जाए मियां। वैसे देखा जाये तो इस देश में कुर्सी मिल जाने के बाद छोड़ता कौन है? लोग तो बिना एक शब्द बोले ही दस साल निकाल ले गए। कुर्सी तो नर्सरी के बच्चे से भी छुड़वानी मुश्किल हो जाती है ये तो फिर भी क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष की पैसे वाली कुर्सी है। ये तो फेवीकोल का जोड़ है आसानी से नहीं छूटेगा।
दुनिया का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड यहां तो किसी को छींक भी आ जाए तो टीवी की ब्रेकिंग न्यूज बन जाती है। क्रिकेट में आजतक सब कुछ शार्ट कट चलाने की कोशिश की गई पर लगता है कि अब आगे नहीं चल पाएगा। जब भारतीय क्रिकेट टीम जिम्बाब्वे के घर में जाकर उसका वाइट वॉश कर रही थी तब इधर जनाब श्री निवासन जी अपने घर में अंदर ही अंदर लीपा-पोती करने में लगे हुए थे। “आपै ई मैं रज्जी पुज्जी, आपै ई मेरे बच्चे जीण”। कहते हैं चुराई गई ईंटों से कभी कोई महल नहीं बना सकता है और ऊपर से भ्रष्टाचार का चूना लगाकर की गई पुताई तो एक बारिश में ही नीचे आ जाती है। बस इतना ध्यान रखे जहां पनाह कि क्रिकेट प्रेमी अपने आपको ठगा हुआ महसूस ना करें क्योंकि इन्होंने आपको इतना ऊंचा मुकाम दिया है, इन्ही की वजह से इस देश में क्रिकेट चल रही है। जहां पनाह तुसीं ग्रेट हो पर दोबारा इस देश के क्रिकेट प्रेमी और कानून को ये मत कहना कि ‘भ्रष्टाचार का तोहफा कबूल करो’ क्योंकि अगर इन्होंने एक बार चड्डी उतार दी--- तो कहीं मुंह दिखाने लायक भी नहीं बचोगे।
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