आईओए की उम्मीदों पर फिरा पानी
अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति
(आईओसी) ने भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है।
अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने भारतीय ओलंपिक संघ के उस प्रस्ताव को खारिज कर दिया
है जिसमें दो साल से कम की सजा वाले व्यक्तियों के लिए ओलंपिक चुनाव लड़ने का
रास्ता साफ किया था। आईओसी ने कड़ा फैसला लेते हुए भारत का ओलंपिक से निलंबन
बरकरार रखा है और संविधान में संसोधन के लिए आईओए को 31 अक्तूबर तक का समय दिया
है।
आईओए ने पिछले
महीने बैठक कर अपने संविधान में संशोधन करते हुए दो साल से कम की सजा पाने वाले और दागियों
को चुनाव लड़ने की छूट का प्रस्ताव दिया था। उस दौरान बैठक में आए आईओसी सदस्य फ्रांसिस्को एलिजाल्डे से कहा गया था
कि भारत में दागियों को दोषी नहीं माना जाता है। बैठक के बाद आईओए के वरिष्ठ उपाध्यक्ष तरलोचन सिंह ने बताया था कि हमने आईओसी को समझाया है कि चार्जशीट का क्या मतलब है और
चार्जशीट होने से कोई व्यक्ति अपराधी नहीं बन जाता। यदि कोई व्यक्ति अदालत में दोषी करार दिया जाता है और वह दो साल या उससे ज्यादा समय तक
सजायाफ्ता रहता है तो ही वह आईओए का चुनाव नहीं लड़ पाएगा। लेकिन ब्यूनस आयर्स में आईओसी ने अपने 125वें अधिवेशन के दौरान आईओए के इस प्रस्ताव को
खारिज कर दिया।
आईओसी के इस कदम के साथ आईओए के
29 सितंबर को प्रस्तावित
चुनाव की संभावनाएं खत्म हो गई हैं। आईओसी ने साफ कर रखा है कि बिना संविधान संशोधन के चुनाव नहीं होगा और न ही तब तक
प्रतिबंध हटेगा।
खेल मंत्रालय और
भारतीय निशानेबाज अभिनव बिंद्रा ने आईओसी के इस कदम का स्वागत किया है। वहीं प्रतिबंधित
आईओए के अध्यक्ष अभय
चौटाला ने साफ कर दिया है कि वह भारतीय कानून के मुताबिक चलेंगे। भारतीय कानून के मुताबिक दागियों को
दोषी नहीं माना जाता है।
आईओसी ने 4
दिसंबर 2012 को आईओए के चुनाव में सरकारी दखल और भ्रष्टाचार के आरोपियों के चुनाव लड़ने
के कारण आईओए पर पाबंदी लगा दी थी। अगले ही दिन आईओए ने चुनाव कराया, जिसमें 2010 कॉमनवेल्थ गेम्स
मामले में भ्रष्टाचार के आरोपी ललित भनोट को महासचिव चुना गया। आईओसी ने चुनाव को
खारिज कर दिया था।
बैन के कारण
भारतीय खिलाड़ियों के ओलिंपिक में भाग लेने का रास्ता बंद हो
गया। अच्छा तो यह होता
सभी मिल कर एक ऐसा फैसला लेते जिससे खेल का भला होता और सही व्यक्ति चुनाव भी लड़
पाते।
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