स्मिता मिश्र

अंग्रेजी में एक कहावत है Blessing in disguise यानि बुरे में भी कुछ अच्छा हो जाता है। ऐसा ही उदहारण पिछले दिनों
देखने को मिला जब फुटबॉल ऑन दी ग्राउंड के बजाय ऑफ़ दी ग्राउंड के कारण सुर्ख़ियों
में आई। सैप ब्लेटर एंड कंपनी के रिश्वतखोरी में संलिप्तता के आरोपों से घनघोर
मचे विवाद के कारण करोड़ों फ़ुटबाल प्रेमियों को धक्का लगा। लेकिन इसका एक फायदा
यह हुआ कि उन तमाम खेल प्रेमियों का ध्यान फीफा महिला विश्व कप की ओर आकर्षित हो
गया।
न ही बाज़ार सजा, न ही टीवी चैनलों
पर भव्य प्रोमो आए और न ही खिलाडियों की तस्वीरें अख़बारों में छपी। और चुपचाप
बिना हल्ला मचाए कनाडा के 6 शहरों में शुरू हो गया- सातवां फीफा महिला विश्व कप।
चुपचाप शुरू तो हुआ लेकिन इसकी बढ़ती लोकप्रियता ने पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए। ऐसा अनुमान है कि इस बार फीफा महिला विश्व कप के
प्रशंसको की संख्या वर्ष 2011 जर्मनी में आयोजित पिछले विश्व कप की तुलना में
दुगनी होगी। कनाडा में चल रही इस प्रतियोगिता के शुरूआती दिनों
में टीवी दर्शकों की संख्या में इजाफा हुआ है। इससे खेल की बढती लोकप्रियता का
अंदाज़ा मिलता है। फीफा के अनुसार अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के उद्घाटन मैच को लगभग
3.3 मिलियन अमेरिकी दर्शकों ने देखा जोकि पिछली प्रतियोगिता की अपेक्षा तिगुनी
संख्या है। चीन द्वारा खेले गए मैच में टीवी दर्शकों की संख्या पिछले खेलों की
तुलना में दुगनी हुई जबकि फीफा विश्व कप खिताबधारी जापान और सर्वोच्च वरीयता
प्राप्त स्विट्ज़रलैंड के मध्य खेले गए मैच को देखे जाने की संख्या 16 प्रतिशत (4.2
मिलियन) बढ़ी। फ्रांस और इंग्लैंड में खेले गए मैच को दुनिया के प्रत्येक देश में
लगभग 1.5 मिलियन दर्शकों ने देखा।
6 जून से 5 जुलाई तक सातवें फीफा महिला विश्व
कप का आयोजन कनाडा के जिन 6 शहरों में आयोजित किया जा रहा है, वे हैं वैंकूवर, एडमंटन,
विनिपेग, ओटावा, मोंट्रियल और मोंक्टन।
2011 में बोली जीत कर प्रथम बार मेजबानी
हासिल की थी। 135 देशों की टीमों में से 24 टीमें शिरकत कर रही है। इन 24 टीमों
में शामिल हैं ---ऑस्ट्रेलिया, चीन, कोस्टा रिका, इंग्लैंड, फ्रांस, जापान, दक्षिण कोरिया, थाईलैंड, मेक्सिको, अमेरिका, जर्मनी,
नीदरलैंड, नॉर्वे, स्पेन, स्वीडन, स्विट्ज़रलैंड, ब्राज़ील, कोलंबिया, एकुआडोर, न्यूज़ीलैण्ड,
कैमरून, आइवरी कोस्ट, नाइजीरिया और मेजबान कनाडा।
खिताबधारी जापान और मेजबान कनाडा को सीधे प्रवेश मिला। प्रतियोगिता का मस्कट
‘शुएमेइ’ एक श्वेत विशालकाय मादा उल्लू है।
प्रतियोगिता में 22 रेफरी, 7 सपोर्ट रेफरी,
44 सहायक रेफरी है। प्रतियोगिता में गोल-लाइन तकनीक का प्रयोग पहली बार हॉक-आई के
साथ किया जा रहा है। साथ ही पहली बार आर्टिफीसियल टर्फ का भी प्रयोग किया जा रहा
है, जिस पर खिलाडियों ने चोट लगने की आशंका से आपति भी जताई है।

हालांकि ये संख्या
पिछले वर्ष ब्राज़ील में हुए पुरुष विश्व कप की तुलना में काफी कम है, किन्तु
फिर भी महिला फुटबॉल की तेज़ी से बढ़ती लोकप्रियता स्थापित करने के लिए पर्याप्त
है। पिछले कुछ समय से फीफा पर लग रहे रिश्वतखोरी और
घोटाले के आरोप भी महिला विश्व कप की लोकप्रियता को बढ़ाने के मुख्य कारण रहे। महिला खेल में पैसा कम है, इसलिए
घोटाले की छाया से यह मुक्त रहा। खेल के प्रसारक ‘बैल
मीडिया’ से सम्बद्ध अधिकारी के अनुसार प्रायोजक खेल के
आदर्शों से जुड़ता है। खेल में आनंद, प्रतियोगिता, fair फेयर प्ले होना अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इसलिए
जैसे ही फीफा स्कैंडल सामने आया तो इसका लाभ कनाडा के 5 शहरों में चल रहे महिला
फुटबॉल को मिल गया। दर्शकों का सारा ध्यान अभी तक उपेक्षित महिला फुटबॉल पर
स्थानांतरित हो गया। ऐसी उम्मीद की जा रही कि लगभग 1.5 मिलियन प्रशंसक इस
प्रतियोगिता को देखेंगे जोकि जर्मनी में आयोजित हुई प्रतियोगिता से लगभग दुगनी
संख्या होगी। 8.6 मिलियन कनाडावासियों ने शुरूआती तीन दिन खेल देखा, जोकि पिछली बार की तुलना में तिगुनी है।
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टीवी मीडिया का महत्त्व खेल और खिलाडियों के प्रमोशन
के लिए बहुत महत्वपूर्ण साधन है। अमेरिकी खिलाडी अलेक्स मॉर्गन लगभग 3 मिलियन डॉलर
विज्ञापन और इंडोर्समेंट से हर साल कमाती है। क्योंकि उनके खेल से प्रभावित हजारों
लड़कियों की नई पीढ़ी है जो उनके द्वारा प्रचार की गई चीज़ों को खरीदती हैं। इन सभी उपलब्धियों के बावजूद महिला खिलाड़ी या उसकी छवि
तमाम खेल मीडिया में लगभग अनुपस्थित रहती है। पुरुष वर्ग के खेल ही छाए रहते है मीडिया पर। यदि उपस्थिति
होती भी है तो किन्हीं ‘इतर’ कारणों के लिए ही वह चर्चा में आती है। भारत की बात करे तो यहाँ भारतीय फुटबॉल
के इतने प्रशंसक नहीं है जितने कि अंतर्राष्ट्रीय टीमों के। प्रिंट मीडिया में लगभग प्रतिदिन समाचार पत्र के दो से चार पृष्ठ खेल के
लिए तय होते हैं जिसका पांच प्रतिशत अंश भी महिला खेल-खिलाड़ियों को नहीं दिया जाता है। मल्टी इवेंट जैसे
राष्ट्रमंडल खेल, एशियाई खेल, ओलंपिक की बात छोड़ दी जाए तो नियमित खेल कवरेज में महिला
प्रतियोगिताओं, स्पर्धाओं की खबरों को दरकिनार कर दिया जाता है। भारत
में फीफा महिला विश्व कप की कवरेज लगभग सभी समाचार पत्रों में अनुपस्थित सी है, यदि है भी तो मात्र एक या दो कॉलम की। टीवी मीडिया भी इसका अपवाद नहीं है।
न मीडिया साथ है, न बाज़ार साथ है और न ही समाज में लड़कियों
के लिए उपयुक्त स्थितियां हैं, पर इसके बावजूद कुछ है जो
स्त्री के साथ है, वह है तमाम विपरीत स्थितियों को झेल कर
सपने देखने की हिम्मत और आगे बढ़ने का माद्दा।
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