फुटबॉल की निकली हवा
कुलविंदर सिंह कंग
हम सब सोच ही रहे थे कि अब आई.पी.एल. के बाद क्या होगा? क्या खेलों में सन्नाटा छा जाएगा? सिर्फ गर्मी ही अपना जौहर दिखाएगी या क्या खेलों में कोई चटपटाका, गर्मागर्म खबर भी आएगी? ऐसी मिर्च-मसालेदार खबरों की तरफ हर समय मुंह उठाए रखने वाले हम भारतीयों को एक और खबर मिल ही गई।
हम सब सोच ही रहे थे कि अब आई.पी.एल. के बाद क्या होगा? क्या खेलों में सन्नाटा छा जाएगा? सिर्फ गर्मी ही अपना जौहर दिखाएगी या क्या खेलों में कोई चटपटाका, गर्मागर्म खबर भी आएगी? ऐसी मिर्च-मसालेदार खबरों की तरफ हर समय मुंह उठाए रखने वाले हम भारतीयों को एक और खबर मिल ही गई।
खबर है कि विश्व के सबसे लोकप्रिय खेल फुटबॉल की भी अब ‘हवा’ निकल गई है। वैसे फुटबॉल में होती तो हवा ही है और
इसे खेलने और खिलवाने वाले पैसों की वजह से और भी ज्यादा ‘हवा’ में रहते हैं। बिना दोनों तरह की ‘हवा’ के ये खेल चल ही नहीं सकता। हवा-हवा में भी फर्क
होता है। साइकिल पंचर की दुकान से पंप लेकर अपनी फुटबॉल में हवा भरने वाले हम
भारतीय लोग.. अन्य कई बातों में तो बिना किसी बात के भी ‘हवा’ में ही रहते
हैं।
अमेरिकी कोर्ट से आए एक आदेश के बाद ज्यूरिख में फुटबॉल की
अंतरराष्ट्रीय संस्था ‘फीफा’ के 14 बड़े
अधिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया। इन पर आरोप है कि विश्व कप फुटबॉल के आयोजन
स्थल अलॉट करने के लिए इन्होंने मोटी रकम रिश्वत के तौर पर ली। 1990 से लेकर अब तक
लगभग छह सौ करोड़ रुपए की रिश्वत दी और ली गई है। 2022 में विश्व कप कतर नामक देश
को अलॉट करने के लिए भी भारी रिश्वत ली गई। कतर एक खाड़ी देश है जहाँ या तो रेत ही
रेत है या फिर तेल ही तेल है। रेत डालते तो गाड़ी रूक जाती.. इसलिए अलॉटमेंट की
गाड़ी में नोट रूपी तेल डाला और गाड़ी दौड़ पड़ी। भई ! तेल का खेल ही ऐसा होता
है.. तेल में डालकर तो धूड़ जैसा बेसन भी कड़क
पकौड़ा बन कर निकलता है। जिनके पास जो चीज होती है.. वह तो वही देगा ना ! भारत को
अगर पेशकश करनी होती तो ना रेत और ना तेल, बस ‘अच्छे दिनों’ का वायदा ही कर सकता था। भारत
में रेत पर तो ‘सैंड माफिया’ का कब्जा है और तेल तो हमारी
खुद की गाड़ियों के लिए ही पूरा नहीं पड़ता है।
फीफा के जिन वर्तमान 14 अधिकारियों को धर दबोचा गया.. वे तो
बेचारे पच्चीस सालों से चली आ रही चेन की एक कड़ी मात्र होंगे। पहले वाले तो
खा-कमा के बिना डकार मारे खिसक गए होंगे। रिश्वत भी ली और बीएसएनएल हो गए। भारत
संचार निगम लिमिटेड नहीं.. BSNL का मतलब था-
“बटोरो, समेटो, निकल लो।”
ज्यूरिख के एक होटल में इन बंदों को पकड़ा भी ऐसे समय कि
बेचारों को मुंह धोने का टाइम भी नहीं मिला होगा। सुबह-सुबह अंधेरे में पुलिस सादी
वर्दी में होटल पहुंची, रिसैप्शन से कमरों की डुपलीकेट चाबियां
ली.. और सारे के सारे सोते हुए धर-दबोचे। सोचो! सीन क्या होगा। कइयों को तो पैंट कमीज भी नहीं पहनने
दिया.. कच्छों में ही ले गए होंगे। गिरफ्तारी के वक्त भारतीय नेता या अधिकारी पूरी
धोती कस लें तो भी इतने प्रेजेन्टेबल नहीं लगते होंगे जितने कि वे गोरे-चिट्टे लोग
‘कच्छों और बरमूडों’ में जंच रहे होंगे। भारत में
खेल अधिकारियों या नेताओं को यूं किसी होटल के कमरे से दबोचा गया होता तो.. राम
राम राम.. पता नहीं होटल के कमरों से क्या-क्या निकलता?
गिरफ्तारी के दो-चार दिन बाद ही फीफा-अध्यक्ष का जो चुनाव
होना था.. वो सही समय पर हुआ। सैप ब्लैटर पांचवी बार चुने गए.. क्योंकि सामने कोई
था ही नहीं...। भारतीय पद-लोलुप नेता और अधिकारी ये अवसर चूक गए, क्योंकि नए को चांस मिलने का पूरा मौका था। हमारे यहां का कोई भी भारतीय
नेता या खेल अधिकारी जो बुढ़िया गया हो, हटाया गया हो,
डराया, धमकाया,
रिश्वताया, तिहाड़ाया जेल जाया.. कोई भी होता.. तो ये कहकर
चुनाव जीत सकता था कि हमने तो इनके मुकाबले बहुत कम रिश्वत खाई है.. और सब्र-संतोष
से खाई-खिलाई है। हमारे यहां के सिस्टम में ऐसा ‘सिफारिशी पंप’ इस्तेमाल करते हैं जो एक बार पंचर हुई प्रतिष्ठा
रूपी फुटबॉल में भी हवा भरके उसे दोबारा खेलने लायक बना देता है। अमेरिकी सिस्टम
में ऐसा नहीं होता है.. समझो वो 14 लोग तो गए 14 साल के बनवास पर..।
अगर कोई भारतीय नेता होता तो फीफा अध्यक्ष बनने के पूरे
चांस थे और बनने के बाद उसके रिश्वत खाने के भी पूरे-पूरे आसार थे और रिश्वत भी
इतनी सफाई से खाता कि पकड़े जाने का कोई चांस ही नहीं होता। मान लो.. अगर पकड़ा भी
जाता तो चिंता दी कोई गल्ल नहीं है जी! वहां की जेले भी थ्री-स्टार होटलों से कम
नहीं होती.. जहां की सुंदर-सुंदर महिला कर्मचारी और अधिकारीं चीयर लीडर्स की
फीलिंग देती।
बिना किसी फूंफां के मुझे फीफा अध्यक्ष बना दो तो मैं
रिश्वत भी जरूर खाऊंगा और सहर्ष जेल भी जाऊंगा.. वहां की जेलों में तो मौजां ही
मौजां। मैं इतना उतावला इसलिए हो रहा हूं क्योंकि वहां भी मुझे घर जैसी फीलिंग ही
आनी है । शादी-शुदा भारतीय व्यक्ति के लिए उसकी अपनी पत्नी का घर किसी जेल से कम
नहीं होता है। समझे..या नहीं समझे? समझांऊ क्या?
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