गोल्ड कोस्ट राष्ट्रमंडल खेलों का कॉस्ट इफेक्टिव बजट !/स्मिता मिश्र
एक बार फिर भारतीय दल तैयार है गोल्ड कोस्ट राष्ट्रमंडल खेलों में शिरकत करने के लिए। और एक बार फिर भारतीय दल प्रस्तावित दल में से इक्कीस नाम काटे जाने के लिए मची घमासान के कारण सुर्खियों में है।
खेलों का जब भी कोई बड़ा अंतरराष्ट्रीय उत्सव आता है तो सपोर्ट स्टॉफ के नाम पर तमाम अधिकारी, स्टार खिलाड़ियों के अभिभावकों के नाम भारतीय आधिकारिक दल में जुड़ जाते हैं। फिर भारतीय दल का भारी लाव-लश्कर सज कर तैयार हो जाता है ओलिंपिक,राष्ट्रमंडल खेल या फिर एशियाई खेलों के लिए । पहले यह लाव लश्कर अपने आकार के कारण सुर्खियाँ बनता है फिर उससे भी बड़ी सुर्खियां तब बनती हैं जब वे ही अधिकारी अपने नियत कर्तव्यों से दूर शॉपिंग और ‘इत्यादि’ कार्यों में व्यस्त होते हैं। जिन खिलाड़ियों के सपोर्ट स्टाफ के रूप में वे जाते हैं। उन्हीं के ‘सपोर्ट’ के समय वे अधिकारी किन्हीं और महत्वपूर्ण कार्यों में व्यस्त होते हैं। यह भी जानना रोचक होगा कि दक्षिण एशियाई देशों के अलावा क्या अन्य देशों में भी यहीं स्थिति है?
दिक्कतें यह भी हैं कि स्टार खिलाड़ियों के अभिभावक भी सार्वजनिक धन पर विदेश-यात्रा करते हैं। हालांकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अभिभावकों की भूमिका मनोवैज्ञानिक कारणों से महत्वपूर्ण हो सकती है लेकिन क्या यही तर्क बाकी खेलों के खिलाड़ी नहीं दे सकते। फिर सिंधु, सायना के अभिभावक ही क्यों? हॉकी,जिमनास्टिक आदि तमाम खेलों के खिलाड़ी भी सरकारी खर्चे पर अपने अभिभावक ले जाना क्यों नहीं चाहेंगे।
बात केवल अभिभावकों की ही नहीं है, भारतीय ओलंपिक संघ हो या मंत्रालय व नौकरशाह सभी में विदेश-यात्रा की होड़ रहती है। इन लोगों की विदेश यात्राओं से जुड़े अतीत के अनेक किस्से अभी भी ताजा है जिनमें भारत सरकार तक को दखल देना पड़ा था। खेल कटौती की कैंची केवल दुतरफा नहीं चौतरफा होनी चाहिए जिसमें भारतीय ओलंपिक संघ के पदाधिकारी, प्रशिक्षक, खिलाड़ी शामिल हो तथा मंत्रालय के मंतरी-संतरी सभी शामिल हो। भारत में आज खेलों और खिलाडी पर पहले से कहीं अधिक ध्यान दिया जा रहा है Iक्रिकेट के अतिरिक्त भी खेल नायक और नायिकाएं उभर रहीं हैं I अब खेलों में भाग लेने के लिए ही नहीं बल्कि पदक जीतने के लिए खिलाडी तैयार होने लगे हैं I ऐसे में यदि सरकार कॉस्ट-इफेक्टिव बजट पर काम कर रही है तो क्या गलत कर रही हैI भारत के कर-दाताओं के श्रम द्वारा अर्जित आय को देश की प्रतिष्ठा की वृद्धि में खर्च किया जाना निश्चित रूप से एक सराहनीय कदम हैI
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